तब लाला रोये थे , अब लाल रो रहें हैं (1)
यह The Times Of India , दिनांक 1 अगस्त , 1938 ; पेज 14 की ख़बर है ।
वह एक ऐसा दौर था जब पंजाब अस्सेंबली में किसान हितों के लिए विकास मंत्री चौधरी छोटूराम द्वारा चार बिल पास किए गए थे , जो संयुक्त पंजाब के इतिहास में ‘सुनहरे क़ानून’ (Golden Bills) के नाम से जाने हैं । जिन्होंने पंजाब के किसान की तक़दीर बदल दी थी । पंजाब के इतिहास में वह ऐसा दौर था कि देहात का किसान मज़दूर उत्साह से लबरेज़ था तो व्यापारी छाती पीट पीट कर रो रहा था । असल में वो “किसान राज” था । इन चार सुनहरे क़ानूनों (इनमें एक मंडी एक्ट भी था जिसको लेकर आजकल देश का किसान सड़कों पर है) ने गैर कृषक व्यापारी वर्ग को यूनियनिस्ट पार्टी (जिसको ज़मींदारा पार्टी भी कहा जाता था) व यूनियनिस्ट नेताओं के विरुद्ध लामबंद होने पर मजबूर कर दिया । शहरी गैर कृषक व्यापारी वर्ग की चिंता और बौखलाहट अख़बार की इस ख़बर में साफ़ दिख रही है ।
30 जुलाई , लायलपुर
प्रांतीय गैर-कृषक सम्मेलन , इसकी अध्यक्षता डॉक्टर गोकुल चंद नारंग ने की । नारंग ने सम्मेलन में चारों बिलों पर जो चिंता व्यक्त की वह किसान वर्ग को समझने की ज़रूरत है । नारंग कहते हैं कि भूमि हस्तांतरण क़ानून बनने से पंजाब दो वर्गों में बाँटा गया , कृषक व गैर कृषक । क़र्ज़ा माफ़ी व साहूकार पंजीकरण क़ानून से प्रांत में साम्प्रदायिक टकराव बढ़ेगा क्यूँकि अधिकतर साहूकार हिंदू हैं व क़र्ज़ा लेने वाले मुस्लिम । (नारंग हिंदू महासभा से जुड़े नेता थे और लगभग साहूकार भी , इसलिए इस क़ानून को इन लोगों ने साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश की , जबकि इनके क़र्ज़े तले हर मज़हब का किसान मज़दूर दबा हुआ था)
अंत में एपीएमसी एक्ट पर नारंग ने जो कहा वह बात ग़ौर करने की है क्योंकि अभी (सितम्बर , 2020) में हमारी केंद्र सरकार ने इस क़ानून में बदलाव किया है , जिसको लेकर किसान सड़कों पर हैं । नारंग कहते हैं - दूसरे बिलों ने गैर कृषकों की ज़मीन पर हाथ डाला , परंतु यह बिल (मार्केटिंग) हमारे व्यापार पर भी असर डालेगा । नारंग ने अस्सेंबली में बिलों की जल्दबाज़ी को लेकर निंदा की । नारंग गैर-कृषकों को एकजुट होने की सलाह देते हैं। क्योंकि यह एकमात्र ऐसा हथियार था जिसके द्वारा वे सफल हो सकते थे।
:- नारंग ने विधानसभा में बिलों को लेकर जल्दबाज़ी की निंदा की , जबकि हक़ीक़त ये है कि सभी बिलों पर बक़ायदा लम्बी बहसें चली , कमेटियाँ बनाई गई । इस मंडी एक्ट को विकास मंत्री सर छोटूराम ने जुलाई , 1938 में अस्सेंबली में पेश किया था और इससे किसान , व्यापारी , सरकार को होने वाले नफ़े नुक़सान को जाँचने के लिए सर छोटूराम दो कमेटियाँ गठित की थी । लगभग एक साल तक इस बिल पर चर्चा चली और 5मई , 1939 से यह अधिनियम प्रभाव में आया । और नारंग साहब को इसमें भी जल्दबाज़ी लगी थी । केंद्र सरकार ने जिस तेज़ी से तीन अध्यादेश लाकर बिना किसी राय मशविरे और बहस के दोनों सदनों से पारित करवा कर , पारित भी ध्वनिमत से ही कर दिया , यदि आज नारंग साहब जीवित होते तो उन्हें समझ आती की जल्दबाज़ी क्या होती है । हालाँकि , ऊपरी तौर पर वे इसे जायज़ ही बताते जैसे आज उनके वंशज बता रहें हैं ।
82 साल पहले हिंदू महासभाई व्यापारी नेताओं ने सर छोटूराम द्वारा बनाए क़ानूनों पर मातम मनाया था , 82 साल बाद आख़िर उस क़ानून में बदलाव कर उनके वंशजों ने अपने पुरखों की आत्मा को शांति प्रदान की ।
जो लोग सरकार द्वारा बनाए इस क़ानून को किसानों के लिए फ़ायदेमंद बता रहें हैं वे एक बार इस बात पर जरूर ग़ौर करना कि तब लाला (व्यापारी) लोग क्यों रोये थे ? अगर ये बात समझ आ गई तो फिर इन्हें ये भी समझ आ जाएगी कि अब लाल (किसान) भी सही रो रहें हैं ।
-यूनियनिस्ट राकेश सांगवान