जात-धर्म के खड़े किए गए नफरतों के बवंडर के बीच भारत की असल कला-संस्कृति के दर्शन करने हो तो सिंघु,टिकरी या गाजीपुर बॉर्डर पर आइए।
कैसे विभाजन की सारी दीवारें ढहाकर किसानों ने भारत को एकजुट किया है यह अपने बच्चों को भी सिखाइये।वीक एंड पर कम से कम अपने परिवार को लेकर यहां जरूर आएं।
एकांतवास से सामूहिकता की भावना किस तरह बेहतर होती है इसको अपनी आंखों से देखिए।जड़ों की तरफ लौटने के दावे को पुख्ता करने व गांव के बचपन को ताजा करने का अनुभव यहां से हासिल किया जा सकता है।
यहां हर जात-धर्म के बड़े-बुजुर्ग बैठे है।भाषा व बोलियों का अनूठा संगम है।रंग-बिरंगे झंडों व वेषभूषा में बैठे लोग भारत की विविधता में एकता का असल स्वरूप है।एकता ने विविधता नहीं पैदा की है।विविधता से एकता पैदा होती है।इसलिए एकदूसरे के प्रति सम्मान की भावना लिए ये लोग साझी लड़ाई लड़ रहे है।
छोटी-छोटी बातों पर गली-मोहल्लों में लड़ने वाले लोगों का यहां आकर सीखना चाहिए कि किस तरह दिलों की विराटता एक दूसरे के दर्द को अपने आगोश में लेकर स्वाहा कर देती है।
इनके भी अपने दर्द है,भावनाएं है।सत्ता-व्यवस्था की गलतबयानी आहत करती है।जिंदगी के अंतिम पड़ाव में स्वर्ग से खेत-खलिहान छोड़कर साढ़े चार महीनों से ठंड,गर्मी,गंदगी,मच्छर,बारिश,आंधी से मुकाबला कर रहे है।असल भारत की यह यह तस्वीर पीड़ादायक है।
लुटियन के बंगलों में,सियासत की फिजाओं में, राजधानियों,पॉश कॉलोनियों में देश को खंड-खंड करने की रणनीति बनती है और किसान इन्हीं टुकड़ों में बंटते भारत को एकजुट करते हुए सीना तानकर खड़ा है।
भौतिक विकास की चकाचौंध के बीच सुकून भरे भारत का दर्शन जरूर करिये व अपने बच्चों को इस दौर में कतई इनसे वंचित न रहने दें।
#FarmersProtest
#किसान_देश_बचाने_निकले_है
प्रेमसिंह सियाग