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गुरुवार, 26 नवंबर 2020

अंध भक्त किसे कहते है

नाम : अंधभक्त
स्थान : भारत
शिक्षा : अनपढ़
मिजाज : अंधविश्वासी
पसंदीदा खेल : राजनीति उसमे भी अधूरा नॉलेज 
दोस्ती : केवल अंधभक्तों से
प्रोफेशन : भाजपा की गुलामी ,चड्डी गैग का सदस्य 
पसंदीदा डायलॉग : पाकिस्तान जाओ
नसीहत : हिन्दू राष्ट्र बनाना, हिन्दू खतरे में है
हाबी : जिंदगी भर गुलामी करना, गाेदी के लिए बाप काे भी छाेड देना

शनिवार, 11 जुलाई 2020

Nepal में दूरदर्शन को छोड़कर सभी भारतीय न्यूज चैनल बंद, जानें क्या है कारण

नेपाल ने दूरदर्शन को छोड़कर अन्य सभी भारतीय समाचार चैनलों का प्रसारण बंद करते हुए आरोप लगाया कि वो ऐसी खबरें दिखा रहे हैं जिससे देश की राष्ट्रीय भावनाएं आहत हो रही हैं.


भारत के साथ जारी तनातनी के बीच नेपाल में केबल ऑपरेटर्स ने अपने देश में सभी भारतीय निजी न्यूज चैनलों पर प्रतिबंध लगा दिया है. हालांकि उनके इस प्रतिबंध से दूरदर्शन को बाहर रखा गया है. भारत और नेपाल को लेकर तनाव जारी है. हालांकि इस संबंध में कोई आधिकारिक आदेश जारी नहीं किया गया है.

यह कदम भारतीय न्यूज चैनलों द्वारा नेपाल के कवरेज को लेकर ऑनलाइन स्तर पर हुई भारी आलोचना के मद्देनजर लिया गया है, इसमें नेपाली नेतृत्व को लेकर खराब छवि पेश की गई थी. नेपाल में मेगा मैक्स टीवी के उपाध्यक्ष ध्रुव शर्मा ने बताया कि चैनल के वितरकों ने 09 जुलाई 2020 को शाम से सरकारी स्वामित्व वाले दूरदर्शन को छोड़कर सभी भारतीय समाचार चैनलों के प्रसारण को निलंबित करने का फैसला किया है.

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, नेपाल ने दूरदर्शन को छोड़कर अन्य सभी भारतीय समाचार चैनलों का प्रसारण बंद करते हुए आरोप लगाया कि वो ऐसी खबरें दिखा रहे हैं जिससे देश की राष्ट्रीय भावनाएं आहत हो रही हैं. इस मुद्दे पर भारत की ओर से तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. यह फैसला ऐसे समय आया है जब भारत और नेपाल के बीच नेपाली नक्शे को लेकर विवाद चल रहा है.

मल्टी सिस्टम ऑपरेटर (एमएसओ) के अध्यक्ष, विदेशी चैनल के वितरक दिनेश सुबेदी ने यहां संवाददाताओं को बताया कि हमनें दूरदर्शन को छोड़कर सभी भारतीय समाचार चैनलों का प्रसारण रोक दिया है. उन्होंने कहा कि हमनें भारत के निजी समाचार चैनलों का प्रसारण रोक दिया है क्योंकि वे नेपाल की राष्ट्रीय भावनाओं को आहत करने वाली खबरें दिखा रहे थे.

पृष्ठभूमि

हाल ही में नेपाल ने अपने नए नक्शे में कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा के इलाकों को अपने क्षेत्रों के रूप में दर्शाया है, जबकि रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण यह इलाके भारत का हिस्सा हैं. नए नक्शे को संसद से मंजूरी मिल गई है. सीमा विवाद के कारण भारत और नेपाल के बीच इन दिनों रिश्ते तनावपूर्ण चल रहे हैं. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 08 मई 2020 को लिपुलेख से धाराचूला तक बनाई गई एक सड़क का उद्घाटन किया था. लेकिन नेपाल ने लिपुलेख को अपना हिस्सा बताते हुए विरोध किया था.

शनिवार, 13 जून 2020

साइमन कमीशन की हकीकत



*हमें आज तक यही  पढ़ाया गया था, कि गांधी ने साइमन कमीशन का विरोध किया था ,, लेकिन यह  नहीं पढ़ाया जाता कि तीन शख्स थे जिन्होंने साइमन कमीशन का स्वागत भी  किया था ।।*

*इन तीन शख्स के नाम निम्न है -*

*1- ओबीसी से चौधरी सर छोटूराम जी। जो पंजाब से थे।*

*2- एससी से डॉक्टर बी आर अम्बेडकर। जो महाराष्ट्र से थे।*

*3- ओबीसी शिव दयाल चौरसिया जो यूपी से थे।।*

*अब सवाल ये उठता है कि गांधी ने साइमन का विरोध क्यों किया?*
 
*क्योंकि 1917 में अंग्रेजो ने एक एक कमेटी का गठन किया था,, जिसका नाम था साउथ बरो कमिशन,, जो कि भारत के शूद्र अति शूद्र अर्थात आज की भाषा में एससी एसटी और ओबीसी के लोगों की पहचान कर उन्हें हर क्षेत्र में अलग अलग प्रतिनिधित्व दिया जाए,, और हजारों सालों से वंचित इन 85% लोगों को हक अधिकार देने के लिए बनाया गया था,, उस समय ओबीसी की तरफ से शाहू महाराज ने भास्कर राव जाधव को,, और एससी एसटी की तरफ से डॉक्टर अम्बेडकर को इस कमीशन के समक्ष अपनी मांग रखने के लिए भेजा।।*

*लेकिन ये बात बाल गंगाधर तिलक को अच्छी नहीं लगी और उन्होंने कोल्हापुर के पास अथनी नाम के गांव में जाकर एक सभा लेकर कहां कि तेली,, तंबोली,, कुर्मी कुनभट्टों को संसद में जाकर क्या हल चलाना है।।*

*इस तरह विरोध होने के बाद भी अंग्रेजो ने तिलक की बात को नहीं माना और 1919 में अंग्रजों ने एक बात कहीं कि भारत के ब्राह्मणों में भारत की बहु संख्यक लोगों के प्रति न्यायिक  चरित्र नहीं है।।*

*इसे ध्यान में रखते हुए 1927 में साइमन कमीशन 10 साल बाद फिर से भारत में एक ओर सर्वे करने आया,, कि इन मूलनिवासी लोगों को भारत छोड़ने से पहले अलग अलग क्षेत्र में उचित प्रतिनिधित्व दिया जाए,,,*

*इस साइमन कमिशन में 7 लोगों की एक आयोग की तरह कमेटी थी,, जिसमे सब संसदीय लोग थे।।*

*इसलिए इसमें उन लोगों को शामिल नहीं किया जा सकता था,, जो लोग भारत के मूलनिवासी लोगों के हक़ अधिकार का हमेशा विरोध करते थे,, जब यह कमिशन एससी एसटी और ओबीसी लोगों का सर्वे करने भारत आया तो,, गांधी,, लाला लाजपराय,, नेहरू और आरएसएस ने इसका इतना भयंकर विरोध किया कि कई जगह साइमन को काले झंडे दिखाए गए,, लाला लापतराय ने इसलिए अपने प्राण दे दिए,, चाहे मै मर भी क्यों न जाऊं लेकिन इन शूद्र अति शूद्र लोगों को एक कोड़ी भी हक अधिकार नहीं मिलने चाहिए।*

*गांधी ने लोगों को ये कहकर विरोध करवाया कि इसमें एक भी सदस्य भारतीय नहीं है,, दूसरे अर्थों में गांधी ये कहना चाहता था,, कि इस कमिशन में ब्राह्मण बनियों को क्यों नहीं लिया।।*

*क्योंकि गांधी ने मरते दम तक एक भी ओबीसी के आदमी में सविधान सभा में नहीं पहुंचने दिया,, इसलिए बाबा साहब ने ओबीसी के लिए आर्टिकल 340 बनाया और संख्या के अनुपात में हक अधिकार देने का प्रावधान किया।।*

*दूसरी तरफ साइमन का स्वागत करने के लिए चौधरी सर छोटूराम जी ने एक दिन पहले ही लाहौर के रेलवे स्टेशन पर जाकर उनका स्वागत किया,, यूपी से ऐसा ही स्वागत शिवदयाल चौरसिया ने किया,, और डॉक्टर अम्बेडकर ने  अलग अलग जगह पर अंग्रेजो का सहयोग  कियसा और भारत में जाति व्यवस्था की जमीनी स्तर की  सही जानकारी साइमन  कमीशन को दी,, जिसकी वजह से गोलमेज सम्मेलन में हम भारत के हजारों सालों से शिक्षा,, ज्ञान,, विज्ञान,, तकनीक,, संपति,, और बोलने सुनने और पढ़ने लिखने से वंचित किए गए लोगों और उस समय के राजा महाराजाओं की ओकात एक बराबर कर दी,, वोट का अधिकार देकर।।*

*लेकिन क्या हम ओबीसी,, एससी एस टी अपने वोट की कीमत आज तक जान पाए,, कभी नहीं जान पाए,, इसलिए हम आज भी 15% लोगों के गुलाम है।।*

*दूसरी बात साइमन का विरोध करके हमारे हक अधिकार का कोन लोग विरोध कर रहे थे।।*

*1- कर्मचंद गांधी गुजरात का गोड बनिया।*

*2- जवाहर लाल नेहरू कश्मीरी ब्राह्मण।*

*3- लाला लाजपतराय पंजाब के ब्राह्मण।।*

*4- आरएसएस के संस्थापक डॉक्टर केशव बली हेडगवार ब्राह्मण  और पूरी की पूरी  आरएसएस लाबी ।।*

 *ये लोग इसलिए विरोध कर रहे थे,, क्योंकि इनकी संख्या भारत में मुश्किल से 15% है और इनको ग्राम पंचायत का पंच नहीं चुना जा सकता,, इसलिए 85% एससी, एस टी और ओबीसी के वोट के अधिकार का,, शिक्षा,, संपति और अलग अलग क्षेत्र में प्रतिनिधित्व का विरोध कर रहे थे।।*

*अत: हमें मालुम होना चाहिये हमारा इतिहास वो नहीं है जो हमे  पढ़ाया जाता रहा  है,, बल्कि वो है जो हम से  छुपाया जाता रहा  है।।*

*अब भी अगर अपना इतिहास नही जानोगे तो  समाज का सही मार्ग दर्शन नही हो पाएगा*
जय यौद्धेय

गुरुवार, 11 जून 2020

लालू प्रसाद यादव



  11जून 1948को गोपालगंज जिले के फुलवारिया गांव में कुन्दनराय यादव व मराछिया देवी के घर पैदा हुए लालू प्रसाद यादव छात्र नेता,सांसद, मुख्यमंत्री,रेल मंत्री बनने के बाद आज झारखंड की बिरसा मुंडा जेल में बंद है।भारत मे पिछड़ों को न्याय की बात जब भी पटल पर आयेगी लालू प्रसाद यादव का नाम साथ मे जरूर लिया जाएगा।लालूप्रसाद यादव भैंसों के तबेले से जिंदगी की शुरुआत करते है और आज भी उनके घर मे भैंसे बंधी रहती है।अपने जीवन में चाहे किसी पद पर पहुंचे हो मगर अपना रहन सहन वो ही देहाती रखा है।कितने ही ऊँचे पायदान नापे हो मगर अपनी जड़ों पर कायम रहे उसी का नतीजा है कि आज वो भ्रष्टाचार के मामले में जेल में है मगर पूरे देश का पिछड़ा वर्ग उनको सम्मान की नजर से देखता है और बिहार के लोग तो इतने दीवाने है कि कांग्रेस,बीजेपी, जेडीयू  सहित तमाम विरोधी इन चुनावों में लालू नाम के आगे नतमस्तक होते नजर आ रहे है!

लालूप्रसाद यादव 1970में पटना यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन के महासचिव व 1973में अध्यक्ष चुने गए।लालू यादव 1974 में जेपी के बिहार आंदोलन में शामिल हो गए।1977में जनता दल के टिकट पर छपरा से चुनाव लड़ा और उस समय सबसे कम उम्र 29वर्ष में सांसद चुने गए थे।1980 व 1985में बिहार विधानसभा के लिए चुने गए और 1989में कर्पूरी ठाकुर की मृत्यु के बाद वो विधानसभा के नेता बन गए और 1989में ही लोकसभा के लिए चुने गए थे।1989के बाद लालू का दौर बिहार में शुरू होता है।1989में दो घटनाएं घटती है और उन पर कड़ा रुख अपनाने के कारण लालूप्रसाद यादव देशभर में एक मजबूत व अपने स्टैंड पर कायम रहते हुए पिछड़ो,दलितों व अल्पसंख्यकों के नेता के रूप में उभरे।

1989 में बिहार के भागलपुर में साम्प्रदायिक दंगा हुआ और कांग्रेस पार्टी इसको रोकने में असफल हो गई।लालूप्रसाद यादव ने मुसलमानों को विश्वास दिलाया कि आप कांग्रेस छोड़कर मेरे साथ आओ में आपके अधिकारों की रक्षा करूँगा!इस प्रकार एम व वाई का समीकरण बना और लालू यादव की ताकत बढ़ी।1989में ही वीपी सिंह सरकार पर दबाव बनाकर मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू करवा दिया जिससे बाकी पिछड़े वर्ग के लोग भी लालूप्रसाद के साथ जुड़ते गए और 1990 में बिहार के मुख्यमंत्री बन गए।

मंडल के खिलाफ राममंदिर के बहाने सोमनाथ से लालकृष्ण आडवाणी कमंडल का रथ लेकर निकले और देश मे साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण होने लगा।अब लालू प्रसाद यादव की असली परीक्षा होनी थी।जैसे ही लालकृष्ण आडवाणी का रथ 23दिसंबर 1990 को बिहार के समस्तीपुर में घुसा, लालू प्रसाद ने आडवाणी को गिरफ्तार करके कोलकाता ले जाकर छोड़ दिया।इससे अल्पसंख्यको का विश्वास लालूप्रसाद में बढ़ा और आज भी वो डटकर लालूजी के साथ खड़े है।

लालूप्रसाद यादव को सिर्फ राजनैतिक या प्रशासनिक पदों के अनुरूप देखना उनके साथ न्यायसंगत नहीं होगा।लालू के दौर में पहाड़ों में पत्थर तोड़ने वाली दलित भगवंतिया देवी रातों रात संसद की दहलीज पर पहुंच जाती है तो घास-फूस की टाट में जीवन काटने वाले एक मोची का बेटा शिवचंद्र राम बिहार सरकार में कैबिनेट मंत्री बन जाता है व धोबी घाट पर जिंदगी गुजारने वाले श्याम रज्जक को लाल बत्ती की गाड़ी मिल जाती है।लालू ने सदियों से खोबचे में धकेले गए लोगों को मुख्यधारा में लाने का कार्य किया और देखते ही देखते बिहार की बहुसंख्यक जनता खुद को एक अव्वल नागरिक होने व अपना राज होने के लम्हों से अभिभूत हो गई।

मगर देश की ब्राह्मणवादी सत्ता,मीडिया व न्यायपालिका को यह स्वीकार्य नहीं था कि कोई पिछड़े का बेटा उन पर राज करे और षड्यंत्रों का दौर शुरु हो गया।15साल के उनके कार्यकाल को जंगलराज बताया गया था और दुष्प्रचार शुरू कर दिया मगर लालू अपने इरादों से टस से मस नहीं हुए।अपने समर्थकों के साथ ब्राह्मणवादी ताकतों को जवाब देते रहे मगर अपने साथी के धोखे के कारण वो आज जेल में है!

चारा घोटाले का मुख्य आरोपी पूर्व मुख्यमंत्री आज आजाद है मगर चारा घोटाले की जांच का आदेश देने वाला उत्तराधिकारी मुख्यमंत्री जेल में है क्योंकि बाकी आरोपियों के खिलाफ सबूत नहीं मिले और लालूप्रसाद यादव ने शायद चारा खाकर मी लार्ड की टेबल पर ही गोबर कर दिया हो!

1991तक बिहार में शिक्षा में वृद्धि दर 6%थी और 1991से 2001के बीच यह 10%से ज्यादा रही।1990में देश की माली हालात खराब थी व उदारीकरण के दुष्परिणाम के बीच भी बिहार राज्य में समान अवसरों को मद्देनजर रखते हुए 6विश्वविद्यालय खोले गए15 साल के शासनकाल में केंद्र सरकार ने भी बिहार को बहुत ज्यादा आर्थिक मदद नहीं दी!सामंतों का अत्याचार, शासन पर अभिजात्य वर्ग का कब्जा और केंद्र सरकार का बिहार के प्रति दोहरा मापदंड- ऐसी कई चीजें झेलकर शासन करना एक पिछड़े तबके से आने वाले मुख्यमंत्री के लिए आसान नहीं था!

1991में प्राथमिक शिक्षा को मजबूत करने के लिए बिहार शिक्षा परियोजना परिषद की स्थापना की गई और 1995 में देश मे सबसे पहले बिहार में  मिड डे मील की शुरुआत की गई और उस समय हर छात्र को 3किलो अनाज दिया जाता था जिसे वाजपेयी की केंद्र सरकार ने देशभर में लागू किया था।

देश की खराब अर्थव्यवस्था का बिहार पर भी प्रभाव पड़ा और मीडिया ने बीमारू राज्य कहना शुरू कर दिया!पूंजीवादी लुटेरों के हलक में हाथ डालकर जब पूंजी का गरीबों में वितरण हुआ तो कागजी आंकड़ों में जरूर गिरावट दर्ज की गई मगर समाजवादी मॉडल के अनरूप आमजन मजबूत हुआ था।

ब्राह्मणवादी सत्ता,मीडिया व न्यायपालिका ने लालू के रथ को हर समय रोकने की कोशिश की मगर लालू एक ब्रांड के रूप में आगे बढ़ते रहे।लालू को जब सीबीआई कोर्ट में समर्पण करना पड़ा तब अपनी अनपढ़ पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाकर शासन जारी रखा मगर इनको कभी जीतने नहीं दिया।

लालू प्रसाद के समकालीन नेता रहे चौधरी देवीलाल आज दुनियाँ में नहीं है और उनके परिवार को ब्राह्मणवादियों ने दो भागों में विभक्त कर दिया!शरद यादव को ब्राह्मणवादियों के जाल में फंसकर उनके ही साथी ने धोखा दिया तो कोई भी ब्राह्मणवादी पार्टी उनके साथ खड़ी नहीं हुई मगर जेल में बैठा लालू यादव उनकी मदद को आगे आया!मुलायम सिंह ने यूपी में बहुत संघर्ष किया मगर लालू के साथ तुलना की जाए तो वो भी बौने ही नजर आते है।

लालू चाहे आज जेल में हो और पूरी ब्राह्मणवादी ताकतें उनको खत्म करने में लगी हो मगर लालू सामाजिक न्याय व समतामूलक समाज का ऐसा ब्रांड बन चुका है जिसे रोकना संभव नहीं है।भौतिक रूप से भले ही लालू हार जाएं मगर विचारधारा के रूप में लालू ब्रांड सदा मार्गदर्शक बनकर जिंदा रहेगा और आने वाले विधानसभा चुनाव में दुबारा बड़ी ताकत बनकर उभरेगा।


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बुधवार, 27 मई 2020

अंधभक्त किसे कहते है

पाकिस्तान रोज गोलीबारी कर रहा है जवान शहीद हो रहे हैं लेकिन देश सुरक्षित हाथों में है चीन घुसपैठ कर रहा है लेकिन देश सुरक्षित हाथो में है एक छोटा सा देश नेपाल आंखें दिखा रहा है लेकिन देश सुरक्षित हाथों में है देश के मजदूर भूखे पेट सड़क पर चलने को मजबूर हैं लेकिन देश सुरक्षित हाथों में है 1 महिने में देश को भिखारी बना दिया अपना खाता खोलकर भिख मांग रहे हैं लेकिन देश सुरक्षित हाथों में अमेरिका से कर्जा ले लिया लेकिन देश सुरक्षित हाथों में है वर्ल्ड बैंक से कर्जा ले लिया लेकिन देश सुरक्षित हाथों में है इसी को अंध भक्ति कहते हैं अंध भक्त लोग सिर्फ एक पार्टी के बारे सोचते हों देश के बारे में नहींयह भी देखें

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