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शनिवार, 6 मार्च 2021

भारत गुलाम क्यों रहा?

भारत का इतिहास पढ़ते है तो यह जरूर लिखा पाते है कि भारत का इतिहास गुलामी का इतिहास है लेकिन यह कहीं नहीं लिखा होता है कि भारत गुलाम क्यों रहा?कारक तत्वों का अध्ययन के बजाय अवस्था का अध्ययन करवाया जाता है।

ऐसा क्या कारण रहा कि विदेशी 400-500 लुटेरों के साथ आते और भारत की संपदा लूटकर चले जाते सत्ता पर काबिज हो जाते थे?भारतीय कबीलाई जीवन को मनुवाद ने इतना टुकड़ों में तोड़ा कि एकता छिन्न-भिन्न हो गई।ऊंच-नीच की ऐसी खाई खोदी की निकट भविष्य में दुबारा एकजुट न हो सके।समाज को तोड़ने के लिए धार्मिक साहित्य रचे गए और हर कालखंड में इसको पोषित करते गए।

खुद की सुरक्षा के लिए कबीलों के बीच से कुछ गद्दारों को पकड़कर क्षेत्रीय घोषित किया गया और अपने भरण पोषण की पूर्ति के लिए वैश्य वर्ग तैयार किया।बहुसंख्यक आबादी को निम्न घोषित कर दिया।मेहनतकश लोगों द्वारा निर्मित पूंजी के बल पर एक परजीवी वर्ग तैयार हो गया।इस परजीवी वर्ग ने अपनी खुशहाली,मौज मस्ती के लिए हर कालखण्ड में बहुसंख्यक वर्ग पर अन्याय व अत्याचारों की लंबी श्रृंखला सजाई।जब बहुसंख्यक जनता इनके अत्याचारों से त्रस्त थी उस समय विदेशी आक्रांता आये।गजनी के सामने बिना लड़े हथियार डाल दिये।गौरी दूसरे झोंके में विजयी हो गया।इनके ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ा।गजनी व गौरी की लूट पर किसान उद्वेलित हुए और इन पर बाद में जाते समय हमले किये थे।

मुगल आये तो यह परजीवी वर्ग झट से इनका दरबारी बन गया।डच,पुर्तगाली,फ्रांसीसी आये तो उनकी गोद मे बैठ गए।अंग्रेजों का आगमन हुआ तो बंगाल में स्वागत को तैयार मिले थे।रोबर्ट क्लाइव ने लिखा था कि हमने 3000 सैनिकों के साथ विजय प्राप्त की थी और विजय जुलूस के दोनों तरफ खड़ी जनता फूल बरसा रही थी।अगर इंडिया की जनता एक-एक कंकड़ हमारे ऊपर फेंकती तो हमें छोड़कर भागना पड़ता!जानते हो फूल बरसाने वाली जनता कौन थी?बाद में अंग्रेजों द्वारा दी गई नौकरियां जॉइन करके वफादारी की कसमें खाती नजर आई थी।

इस विभाजित समाज का फायदा विदेशी आक्रांताओं ने उठाया और भारत लंबी गुलामी के चंगुल में फंसा रहा।लेकिन भुगता इस देश बहुसंख्यक वर्ग ने।ब्राह्मण दरबारी नौकर बन गए,क्षेत्रीय सहयोगी लठैत बनकर मौज उड़ाते रहे और व्यापारी माल उनकी खिदमत में अपनों को ही लूटकर पेश करते रहे।इस देश के किसानों ने विभाजित समाज के बीच सदा अपना मस्तक ऊंचा रखा और गजनी से लेकर गौरी तक,बाबर से लेकर अंग्रेजों तक सदा संघर्ष किया।मुगलों पर खापों ने सदा नकेल डालकर रखी और जब अंग्रेजों ने सीमा लांघी तो 1857 से दो-चार होना पड़ा और खेती पर शिंकजा कसने की कोशिश की तो सरदार अजीतसिंह के नेतृत्व में 9 महीने लंबी लड़ाई लड़ी।देश के लिए सर्वाधिक बलिदान किसान कौमों ने दिए है और आज भी अन्तराष्ट्रीय बॉर्डर से लेकर दिल्ली के बॉर्डर तक किसान व उनके बच्चे खड़े है और सत्ता पर मुगलों के दरबारी व अंग्रेजों के वफादार नौकर बैठे है।

वर्तमान सत्ता भी समाज के विभाजन की बुनियाद पर ही कुर्सी पर काबिज है।जात को जात से लड़ा दो,धर्म को धर्म से लड़ा दो और सत्ता पर काबिज रहो।अपने पुरखों की परंपरा को बखूबी निभा रहे है इसलिए देश की बहुसंख्यक आबादी के खिलाफ नीतियां बनाई जा रही है और पूंजीपति लुटेरों के हाथों देश बेचा जा रहा है।

इस किसान आंदोलन को ही देख लीजिए इनका पूरा इतिहास आईने की तरह आपके सामने पेश हो जाएगा।पंजाब के किसानों ने शुरुआत की तो उनकी गोएबल्स मशीनरी खालिस्तानी घोषित करने में लग गई!जब हरियाणा व पश्चिमी ऊत्तरप्रदेश उठ खड़े हुए तो जाट जाति का आंदोलन बताना शुरू कर दिया।जाट/जट्टों को भूलवश इतिहास याद दिला दिया।जब राजस्थान, मध्यप्रदेश,महाराष्ट्र,कर्नाटक,उड़ीसा से लेकर केरल तेलंगाना तक किसान सड़कों पर उतरे तो इनकी नजर वापिस जाटों पर आकर टिक गई।जब किसानों ने कहा कि कानून वापिस न लेने का तुम्हारा 6 साल का रिकॉर्ड है तो हमारा भी 1000साल का लड़कर जितने का इतिहास है।तब इन्होंने  इतिहासकारों से सलाह ली।

इस आंदोलन में हर वर्ग,हर जाति खड़ी है लेकिन जाट,जट्ट,मुल्ला जाट की एकजुटता इस आंदोलन की मजबूत कड़ी है।यही कारण है कि इस एकता को तोड़ने के लिए पूरा परजीवी वर्ग जी-जान से जुटा हुआ है।स्याह एंड कंपनी ने जाट कौम के क्षेत्रियों/गद्दारों को तोड़ने की जिम्मेदारी दी है।संघी ट्रोला जाट युवाओं को बरगलाने में लग चुका है।मुज्जफरनगर दंगों को कैश करने की कोशिशें दुबारा चालू हो चुकी है।हरियाणा के कुछ युवा संयुक्त किसान मोर्चे से अलग भाषा बोल रहे है।पंजाब के युवाओं के बीच भी परजीवी गैंग घुसपैठ कर रही है।सत्ता मजबूत कड़ी तोड़ने के प्रयास में है।इस आंदोलन की मजबूत कड़ी कहीं कमजोरी में न बदल जाएं इसके लिए बेहद सतर्कतापूर्वक कदम उठाने होंगे।अपने आसपास कोई आंदोलन को लेकर गलत बात करें,अफवाह फैलाने की कोशिश करें,जात-धर्म मे बांटने की कोशिश करें उनको जमीन से लेकर सोशल मीडिया तक काउंटर करें।ख़ामोशमिजाजी भी कई बार भारी पड़ जाती है।

याद रखिये 40 जत्थेबंदियों के नेता किसानों के प्रवक्ता मात्र है।किसानों की भावनाओं को आगे व्यक्त करते है।कहीं ऐसा महसूस हो कि भावनाएं सही से व्यक्त नहीं हो रही है तो इसको ठीक करने के अन्य चैनल होते है पहुंचाने/व्यक्त करवाने के।जात/धर्म की दीवारें लांघकर जो एकजुटता आई है और विभाजनकारी सियासत व सत्ता के नकेल डालकर खड़ी है वो किसानों के असंख्य बलिदानों से निर्मित नींव पर आई है।परजीवी बाप बदलते देर नहीं करते।ये जगह,मालिक बदल इधर उधर हो जाएंगे लेकिन मातृभूमि को खून पसीने से सींचने वाले हम लोग के सामने कोई विकल्प नहीं है।हमारे सामने एक ही विकल्प है लड़कर जीत सुनिश्चित करो।

किसान कौम के 216 क्षेत्रियों की बदौलत किसान की फसल एमएसपी पर नहीं बिक रही है

सामान्य ज्ञान