2013 में मुज्जफरनगर_दंगों के बाद एक अंग्रेजी अख़बार में संघ के व्यक्ति का बयान था कि अब तक हम जाटलैंड में एंट्री नहीं कर पा रहे थे पर अब मुजफ्फरनगर के बाद हमें जाटलैंड में एंट्री मिल गई | और संघ के इन महाशय का बयान बिलकुल सही भी है | आज जाटलैंड में जाट ही चौधरी छोटूराम , चौधरी चरण सिंह , चौधरी देवी लाल जैसे महान नेताओं के खिलाफ बोलने लगे हैं | दरअसल मुंह तो जाटों के हैं पर इनके मुंह में जो ये बोल हैं ये इन संघियों के हैं | सभी धर्मों के जिन जाटों ने कभी चौधरी छोटूराम , चौधरी चरण सिंह , चौधरी देवी लाल का साथ दिया समय समय पर उन्हीं जाटों के अन्दर इन लोगों ने जहर भरा | जिस किसानों के मसीहा चौधरी छोटूराम ने सिर्फ जाट ही नहीं हर किसान मजलूम को उसका हक़ दिलवाया उस महान आत्मा को आज ये लोग खुद आगे न आकर हमारे ही लोगों से अंग्रेजों का पिट्ठू कहलवा रहें हैं |
अब बात जाट आरक्षण की | 2014 से पहले सिर्फ राजस्थान के जाटों को ही केंद्र मे आरक्षण था उसमे भी भरतपुर धोलपुर जिलो को छोड़ कर | दिल्ली , यू.पी. , मध्यप्रदेश , हिमाचल प्रदेश के जाटों को राज्यों मे आरक्षण पहले ही मिला हुआ था परंतु इनका केंद्र मे आरक्षण नहीं था | राजस्थान के जाटों ने जब शुरू में आरक्षण की मांग उठाई उस वक़्त राज्य मे भाजपा सरकार थी | भाजपा की शेखावत राज्य सरकार जाटों के आरक्षण के विरुद्ध थी | इसके लिए राज्य सरकार ने एनसीबीसी के सामने अपनी आपत्ति भी दर्ज कारवाई | एनसीबीसी ने 1997 में ही गुजराल सरकार को जाटों को केंद्र मे आरक्षण देने की अपनी सिफ़ारिश भेज दी थी परंतु उस पर कोई फैसला नहीं हुआ और वह ऐसे ही लटकी रही | राजस्थान में जाटों का आंदोलन पूरे जोरों पर था | इस मांग के लिए राजस्थान में लाखों की संख्या मे जाट एक रैली में इकट्ठा हुए और फैसला लिया गया कि जो आरक्षण देगा उसे वोट देंगे | वाजपाई ने आरक्षण देने का वादा किया और सरकार में आते ही 1999 मे एनसीबीसी की सिफ़ारिश को मानते हुए जाटों को आरक्षण दे दिया , जिसमे दो जिले छोड़ दिये भरतपुर और धोलपुर , एनसीबीसी ने कारण बताया कि यह जाट रियासते थी | हरियाणा यू.पी. , पंजाब के जाटों को आरक्षण न देने का कारण आर्य समाज बताया | जब 1999 में राजस्थान के जाटों को आरक्षण दिया तो आरबीसीसी के सदस्य-सचिव सत्यनारायन सिंह ने इस का विरोध किया और अपने पद से त्याग पत्र दे दिया और उसके बाद सत्यनारायन सिंह ने जाटों के इस आरक्षण को राजस्थान हाई कोर्ट मे चुनौती दी |
अब इसमें देखने वाली बता यह हैं कि भाजपा का यह कैसा जाट प्रेम था कि एक तरफ तो केंद्र सरकार जाटों को आरक्षण दे रही हैं तो दूसरी तरफ भाजपा की राज्य सरकार खुद ही इसका विरोध कर रही थी ? इसके अपने आदमी ही कोर्ट मे याचिका दायर कर रहे थे ? यू.पी. व दिल्ली के जाटों को आरक्षण वहां कि भाजपा राज्य सरकारों ने दिया , मध्य प्रदेश के जाटों को आरक्षण कांग्रेस की दिग्विजय सिंह सरकार ने दिया | राज्य सरकार जाटों को राज्य मे पिछड़ा मान रही हैं जबकि केंद्र सरकार उन्हे केंद्र मे अगड़ा मान रही थी , यह कैसा न्याय ?
अब जब 2013 में हरियाणा के जाटों की आरक्षण की मांग को मानते हुए हरियाणा राज्य की हुड्डा सरकार ने जाटों को आरक्षण की घोषणा की तो मीडिया में सबसे पहले इसका विरोध भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रामबिलास शर्मा व अंबाला से भाजपा के विधायक अनिल वीज ने किया | 2014 में कांग्रेस ने 9 राज्यों के जाटों को केंद्र में आरक्षण की घोषणा की तब भी भाजपा के कई नेताओ ने इसका विरोध किया | सोचने वाली बात यह हैं कि राजस्थान में आरक्षण के लिए 4-5 लाख इकट्ठा हुए तब भाजपा ने मौके की नजाकत को देखते हुए घोषणा की जबकि कांग्रेस द्वारा दिये गए इन 9 राज्यों से तो कभी 1 लाख जाट भी इकट्ठा नहीं हुए और फिर भी कांग्रेस ने 9 राज्यो के जाटों को आरक्षण दे दिया ! खूब हैं जाट भी जिन्होंने इनका विरोध किया उन्हे वोट और जिहोने इनको आरक्षण दिलाने मे मदद की उनकी गोभी खोद दी ?
9 राज्यों को दिए आरक्षण पर जिस कांग्रेस ने स्टे भी नहीं लगने दिया उसको भाजपा ने सत्ता में आते ही निरस्त करवा दिया ? और हरियाणा में भी जो आरक्षण ढाई साल के करीब रहा उसको भी भाजपा ने निरस्त करवा दिया | दोनों ही जगह दलील थी कि कांग्रेस ने अध अधुरा दिया , हम इसे ढंग से पक्का करके देंगे | और उसके बाद जिस केसी गुप्ता आयोग को सुप्रीम कोर्ट ने मना किया उसी को फिर से आधार बना कर बीजेपी ने हरियाणा में फिर से आरक्षण दे दिया , फर्क इतना कि इन्होने उसे विधानसभा में पास करके दिया | पर इस पर भी कोर्ट कि पहली तारीख पर स्टे लग गया | केंद्र में तो आजतक जाट आरक्षण पर कोई कार्यवाही नहीं जबकि भाजपा सरकार ने स्वर्णों को आरक्षण देने में चंद लम्हे लिए ! इस बीच हरियाणा में बीजेपी के दो सांसदों राजकुमार सैनी व अश्विनी चोपड़ा ने जाटों के खिलाफ बोलना शुरू किया | राजकुमार सैनी ने तो जाटों , चौधरी छोटूराम व चौधरी भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के पिता तक के बारे में बहुत गलत बयानबाजी की | हालाँकि , बाद में हुड्डा परिवार पर जो बयान दिया था उसके लिए माफ़ी मांग ली | पर राजकुमार सैनी के बयानबाजी से हरियाणा के हालात बिगड़ते ही गए | जब मीडिया भाजपा नेताओं से राजकुमार सैनी के बयानों की पूछता तो सबका एक ही जवाब कि यह राजकुमार सैनी की निजी अभिव्यक्ति है | फरवरी 2016 में शांतिपूर्वक आरक्षण आन्दोलन को भड़का कर हिंसक करवा दिया गया और नतीजा ये हुआ कि भारी जानमाल का नुकसान हुआ | जाटों को बदनाम करने के लिए मुरथल रेप जैसी झूठी कहानियां गढ़ी गई |
जब चुनाव से पहले कांग्रेस ने सेना के अगले जरनल के लिए जरनल दलबीर सुहाग के नाम की सिफ़ारिश भेजी तब भी भाजपा ने इसका विरोध किया आचार संहिता का बहाना किया | भाजपा सरकार बनने के बाद भाजपा के एक मंत्री ने फिर सुहाग साहब का विरोध किया और आपत्तीजनक टिप्पणी भी की | सुहाग साहब पहले जाट हैं जो सेना के जरनल बनेंगे | और अभी हाल ही में भी भाजपा के इन्हीं मंत्री जी ने एक पोस्ट में जाट , गुर्जर , मराठा को भारत को इजराइल बनने की रह में रोड़ा बताया है | पर बाद में दबाव में इस पोस्ट को हटा लिया गया |
ये तो कुछ मुख्य बातें हैं , अगर हर छोटी छोटी बात और इतिहास से लिखने बैठा तो इस पर पूरी एक किताब लिखी जा सकती है | जाटों एक सीधी से बात समझ लो तुम्हारा जो भी नेता मुकाम तक गया वह तुम्हारी एकता के कारण गया | और जब भी तुमने धर्मों में बंट कर एकता तोड़ी तो दुसरे ही नेता बने | और भाजपा तो राजनीती ही धर्म की करती है तो अब खुद हिसाब लगा लो कि यह तुम्हरी एकता में बाधा है या फायदा ? एक बात ध्यान रखना जब भी धर्म की बात चलेगी तो उसमें राज तुम्हारा नहीं होगा | उस राज में तुम सिर्फ प्यादों की भूमिका में रहोगे | ये लोग तुम्हें राष्ट्रवाद के नाम पर बहकाएंगे | खुद ही सोचों कि क्या तुम या तुम्हारे बाप-दादा देशद्रोही गद्दार थे ? जब नहीं तो फिर क्यों ?
जय योद्धेय
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मंगलवार, 26 मई 2020
सोमवार, 25 मई 2020
जाट
जाट एक कबीलाई जाती रही है और दुनिया भर के इतिहासकारों को पढ़ते है तो यह साबित होता है कि शिकार युग से खेती युग की तरफ बढ़ते तथ्यों में हर कालखंड में जाट की मौजूदगी रही है।उत्तर भारत का इतिहास पढ़ते है तो लगता है कि जाटों के इतिहास के साथ बहुत नाइंसाफी की गई है।कहा जाता है कि जो कौम अपना इतिहास भूल जाती है उसका वर्तमान इधर-उधर व भविष्य अंधेरे में नज़र आने लगता है।
भारत की किसान जातियों में जाट सबसे बड़ी आबादी में है और आज के हालात देखकर लगता है कि जाट अपना इतिहास भूल चुके है।वर्तमान की जमीं व भविष्य की बुनियाद इतिहास के सबक पर बनती है।
जाटों में मुख्यतया तीन प्रकार के जाट हो गए है।पहला हिंदुत्व वाला जाट,जिसको न वर्तमान का ज्ञान है और न भविष्य की आहट सुनाई देती है बस जाट होने का गौरव करने का झंडा थमा दिया गया है।दूसरा धर्मों में बंटा जाट है किसी को तिलक लगाकर,कलेवा बांधने पर गर्व है तो किसी को जालीदार टोपी पहनने पर गर्व है।किसी को पगड़ी पहनने पर गर्व है तो किसी को बाइबिल में दैवीय चमत्कार नज़र आता है।तीसरा जाट जो हर कदम पर जाट ही बने रहना चाहता है मगर ऊपर के दोनों तरह के जाट इनके जाट होने पर ही सवाल खड़े कर रहा है।
जाट ही नहीं हर किसान जाति यथा यादव,पटेल,गुर्जर, मराठा,कापू,मीणा, मेघवाल आदि की यही हालत है।सबसे बड़ी मजेदार बात यह है कि ये तीनो तरह के लोग अपनी-अपनी जाति के सामाजिक संगठनों के नेता है और किसी न किसी मोड़ पर जातिय स्वाभिमान की जंग में फंसे नज़र आ रहे है।इनके बीच लड़ाई धर्म को लेकर है।धर्म के नाम पर ये लोग आपस मे उलझे हुए है और धर्म की लड़ाई-द्वेष की बुनियाद पर सियासत की दिशा तय करने में लगे हुए है।
चौधरी छोटूराम सिकंदर हयात खान के साथ मिलकर संयुक्त पंजाब में सरकार चला लेते थे,चौधरी चरणसिंह की सभाओं में दाढ़ी वाले व पगड़ी वाले एकसाथ जुटकर उनको प्रधानमंत्री बना देते थे।चौधरी कुम्भाराम आर्य द्वारा किये संघर्ष में जाट-दलित बराबर के लाभार्थी बन जाते थे,बलदेवराम जी मिर्धा,रामदान जी डऊकिया के बनाये किसान बोर्डिंग में सभी जातियों के छात्र रहकर पढ़ते थे।कहने का तात्पर्य यह है कि जाटों की तरक्की के हर कार्य मे,जाट राजनेताओं के हर संघर्ष-लाभ में कभी जाति तक नहीं देखी गई तो फिर यह धर्म की चादर क्यों मजबूत दीवार बनकर खड़ी हो गई कि आपस मे ही जूतमपैजार किये जा रहे है?
अगर जाटों को इतिहास से सबक लेना व वर्तमान में संघर्ष करना है,उसकी बुनियाद पर भविष्य में अपना वजूद बनाये रखना है तो सबसे पहला काम यह करना है कि सब धर्मों की चमत्कारिक कहानियों से खुद को मुक्त करके जाट बनना होगा।जाटों का उज्ज्वल भविष्य सिर्फ और सिर्फ जाट बने रहने में है।जाट सदा से किसान कौम रही है और संघर्ष जाट के जीवन की बुनियाद है।कायर लोग धर्मों में सुरक्षित महसूस करते है।यह जाटों का गुण नहीं है।जाट जिस धर्म मे गया वो धर्म ही खतरे में गया है,जाटों को किसी धर्म से कोई खतरा नहीं है।
जाटों के खून में धर्म नहीं है,जाटों के गुणों में कायरता नहीं है।जाट जितने भी धर्मों में गए,जितने भी नए सम्प्रदाय बनाये मगर अपना जाटपना नहीं छोड़ पाएं है।जब भी जाट संघर्ष के मैदान में खड़ा होता है धर्मों की दीवारे ढहाकर सबसे पहले जाट ही उसके साथ खड़ा होता है और उसके समर्थन में जाटों के स्वाभाविक साथी जो सदियों से उनके साथ भाईचारा बनाकर साथ रहते आयें है।
भगतसिंह को लेकर भी बड़ा अजीब सा संघर्ष छिड़ा हुआ है।इस संघर्ष में कोई और नहीं बल्कि जाट ही आपस मे जूतमपैजार हुए जा रहे है।23 साल के एक युवा ने जो समाज को दिया है उसका अहसान मानकर उनके विचारों पर चलने के बजाय यह तय किया जा रहा है कि भगतसिंह सिक्ख थे,हिन्दू थे,आर्यसमाजी थे या कुछ और?"मैं नास्तिक क्यों हूँ"नामक भगतसिंह का लिखा लेख ये सब लोग पढ़ चुके है मगर अपनी लालसा में उसको धार्मिक बताने की जाहिलयत के खेल को खेल रहे है।
क्या नास्तिक होना,कहना मात्र ही पर्याप्त नहीं है कि उनका किसी भी धर्म से कोई लेना देना नहीं?क्या किसी धर्म के अनुयायी परिवार में पैदा होना उनका गुनाह था?क्या किसी पंथ-सम्प्रदाय से प्रभावित परिवार में पलना-बढ़ना कोई अपराध हो गया था?जब इंसान परिपक्व हो जाता है,अपनी सुध-बुद्ध हासिल कर लेता है और खुद ही मात्र कहता नहीं है कि मैं नास्तिक हूँ बल्कि उससे भी दो कदम आगे जाकर लोगों को समझाने के लिए लिखता है "मैं नास्तिक क्यों हूँ?"क्या यह पर्याप्त नहीं है?
जाट की प्रकृति प्रेमी विरासत को छोड़कर जिन्होंने भी आसमानी किताबों मे अपना भविष्य खोजा, यीशु की आस्था में मुक्ति का मार्ग ढूंढा, पगड़ियों का स्वरूप बदला, लकड़ फूंकने में जीवन की शुद्धता को खोजा वो सब जाटों को बिखेरने के शगूफे थे और धार्मिक कट्टरता की पौथीयों का वाचन करके उनको कायर बनाया गया था बाकी जाट जहां खड़ा हो जाता था वो इतिहास बन गया और भारत का भविष्य भी वो जाट निर्धारित करेंगे जो सिर्फ और सिर्फ जाट बनकर लड़ेंगे
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