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गुरुवार, 16 जुलाई 2020

मृत्युभोज और मानवता



 मृत्यु+भोज=मृत्युभोज।मृत्यु के साथ भोज शब्द जब जुड़ जाता है तो यह मानव सभ्यता से परे किसी पशु सभ्यता से संबंधित होने की कल्पना क्षेत्र में चला जाता है।वैसे मैंने अपने जीवन मे देखा है कि खुर वाले पशु खुर वाले को व पंजे वाले को नहीं खाते है!कुत्ते-बिल्ली की दुश्मनी की कहानियां हमने बहुत पढ़ी है।दोनों पालतू व जंगली हो सकते है इसलिए शायद अधिकार को लेकर झगड़ा रहा होगा मगर कभी मरी बिल्ली को कुत्ता नहीं खाता व मरे कुत्ते को बिल्ली नहीं खाती।

हर जीवित प्रजाति अपने सहोदर के साथ इतना घिनौना अपराध नहीं किया है जितना मानव प्रजाति ने किया है और मृत्युभोज इसका जीता-जागता उदाहरण हमारे सामने है।एक इंसान की मौत पर भोज,लेनदेन की खींचतान,ओढावनी-पहरावणी के झगड़े,,लाचार-बेबस परिवार का मुँह बंद करके सामाजिक तानाशाही!इंसान जानवर बन जाये तो भी अपनी प्रजाति पर रहम कर जाएं मगर इंसान बनकर जो संवेदनहीनता,क्रूरता की पराकाष्ठा लांघी है वो अक्षम्य है मगर आगे न लांघी जाएं उसको रोकना जरूरी है नहीं तो हमारी भावी पीढियां इन मूर्खताओं को पढ़कर शर्मिंदा होगी!

1960 में मृत्युभोज रोकथाम अधिनियम बना।उस समय इस बुराई के खिलाफ लड़ने वाले व कानून बनवाने वाले हमारे पुरखे कितने दूरदर्शी रहे होंगे!सत्ता पर कब्जाधारी लोग कभी इन मूर्खताओं पर कानून बनाकर रोकने का प्रयास नहीं करते बल्कि जब दबाव पड़ता है तो कानून बनते है।इस कानून में जानबूझकर एक खामी रखी गई।रोकथाम की जिम्मेदारी किसी के कंधे पर नहीं डाली गई।कानून तो दबाव में बना मगर अनुपालना कौन करेगा,इसकी जिम्मेदारी किसी पर भी नहीं डाली गई।

इससे मृत्युभोज रूपी बुराई के खिलाफ लिखने का कानूनी अधिकार हमे मिला और हमारे जैसे लोग वर्षों से जागरूकता अभियान चला रहे थे मगर जब कोई मरता तो समाज के लोग मृत्युभोज का आयोजन कर देते।हमारी मेहनत बेकार नहीं गई।जागरूकता आई मगर इन मौके पर हम जंग इसलिए हार जाते थे कि सांसद, विधायक,सरपंच,पटवारी,ग्रामसेवक खुद पट्टी,खेड़ा,न्यात की जाजम पर सफेद झोला पहनकर बैठ जाते थे और जागरूकता अभियान चला रहे लोग निराश हो जाते थे कि पुलिस को सूचना देने पर भी कुछ होगा नहीं फालतू में समाज मे दुश्मनी पैदा हो जाएगी।

पिछले लंबे समय से हमने इसको लेकर हर मंच पर दबाव बनाया कि कानून तो है मगर पटवारी,ग्रामसेवक,सरपंच आदि ग्राम पंचायत के कारिंदों पर जब तक जिम्मेवारी नहीं डाली जाती तब तक इसको रोकना संभव नहीं है।मेरे रिश्ते के चाचाजी गुजर गए लॉक डाउन में और बाद में मृत्युभोज करने की सूचना मुझे मिली।मैंने जिम्मेदारों को संबोधित करते हुए लिखा था मगर रोक नहीं पाए।लोग तो 100 ही एकत्रित हुए मगर यह गलत था।कई मित्रों से बात की।बात सीएम गहलोत साहब तक पहुंचाई गई।डीजीपी से लेकर एसपी तक पत्र लिखे गए।शुक्रिया अदा करते है कि गहलोत साहब ने तुरंत संज्ञान लिया और कानूनी जिम्मेवारी तय की।

मृत्युभोज की बुराई से हर समाज झकड़ा हुआ है और हर समाज के जागरूक लोग इसके खिलाफ लंबे समय लड़ रहे है।अब जिम्मेदारी तय हो गई है तो हम सबको मिलकर इस कुरीति को मिटाने का प्रयास करना चाहिए।ग्राम पंचायत स्तर पर 4-5 लड़के तैयार हो जाएं जो किसी के मौत पर हमें सूचित कर दें।हम पहले से संबंधित क्षेत्र के थाना अधिकारी व एसडीएम को सूचना कर देंगे।उसके बाद भी अगर मृत्युभोज हुआ तो उसकी फोटो/वीडियो चुपचाप हमे उपलब्ध करवा दें ताकि स्थानीय जिम्मेदारों के ऊपर मुकदमा दर्ज करवाया जा सके।

हमने 90%विजय इस बुराई पर प्राप्त कर ली है बस एक जोर के झटके की जरूरत है।10-15 पटवारी-सरपंच पर मुकदमे हो गए तो सब जिम्मेदारी कंधों पर उठाकर चलने लग जाएंगे।हमारा प्रयास होना चाहिए कि साल भर के भीतर इस कलंक से मुक्त हो जाएं!

काश हमारे पूर्व के सरपंच स्वविवेक से इस तरह की पहल करते तो न जाने कितने बच्चे अनपढ़ रहने से बच जाते!कितने परिवार कर्ज में फंसकर गरीबी के दुष्चक्र में फंसने से बच जाते!सरपंच खेड़ा, पट्टी,इंडा समिति की अध्यक्षता न करते तो उज्जलत के कई सौपान पार कर लिए होते।किंतु देर आये मगर दुरुस्त आये।ऐसे सरपंचों को समाज आदर्श माने और इनसे दूसरे सरपंच प्रेरणा ले इसके लिए हमारी कलमों की सीमाएं खुलनी चाहिए।

सचिन पायलट का पहला इंटरवयू https://www.facebook.com/puchtahaibhart/

बुधवार, 15 जुलाई 2020

सचिन पायलट का पहला इंटरव्यू इंडिया टुडे मैगजीन

सवाल: आप मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से खफा क्यों हैं?

जवाब: मैं उनसे नाराज नहीं हूं और ना ही किसी तरह की कोई स्पेशल शक्ति मांग रहा हूं. मैं बस इतना चाहता हूं कि कांग्रेस की सरकार राजस्थान में लोगों को किए हुए वादे को पूरा करे जो चुनाव के दौरान किए गए थे. हमने चुनाव में वसुंधरा राजे की सरकार के खिलाफ प्रचार किया, जिसमें अवैध माइनिंग का मसला था लेकिन सत्ता में आने के बाद अशोक गहलोत जी ने कुछ नहीं किया और उसी रास्ते पर चल पड़े. पिछले साल राजस्थान हाई कोर्ट ने एक पुराने फैसले को पलटते हुए वसुंधरा राजे को बंगला खाली करने को कहा, लेकिन अशोक गहलोत सरकार ने फैसले पर अमल करने की बजाय इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी.

अशोक गहलोत एक तरफ तो पूर्व मुख्यमंत्री की मदद कर रहे हैं और दूसरी तरफ मुझे और मेरे समर्थकों को राजस्थान के विकास में काम करने की जगह नहीं दे रहे हैं. अफसरों को कहा गया कि मेरे आदेश ना मानें, मुझे फाइलें नहीं भेजी जा रही थीं. महीनों तक विधायक दल या कैबिनेट की बैठक नहीं होती है. ऐसे पद का क्या फायदा अगर मैं लोगों को किया गया वादा ही ना पूरा कर सकूं.

सवाल: आपने पार्टी के स्तर पर इन मुद्दों को क्यों नहीं उठाया?

जवाब: मैंने कई बार इन मसलों को सभी के सामने रखा है. मैंने प्रभारी अविनाश पांडे और अन्य वरिष्ठ नेताओं से बात की, खुद अशोक गहलोत से इस मसले पर बात की है. लेकिन जब मंत्रियों और विधायकों की बैठक ही नहीं होती थी, तो बहस और बातचीत की जगह ही नहीं बची थी.

सवाल: अशोक गहलोत के द्वारा जब विधायक दल की बैठक बुलाई गई, आप नहीं गए. वहां पर भी तो मुद्दों को उठाया जा सकता था?

जवाब: मेरे आत्मसम्मान को चोट पहुंची है. राज्य की पुलिस ने मुझे राजद्रोह का नोटिस थमा दिया. अगर आपको याद हो तो 2019 के लोकसभा चुनाव में हम लोग ऐसे कानून को ही हटाने की बात कर रहे थे. और यहां कांग्रेस की ही एक सरकार अपने ही मंत्री को इसके तहत नोटिस थमा रही है. मैंने जो कदम उठाया वो अन्याय के खिलाफ था. अगर व्हिप की बात हो तो वो सिर्फ विधानसभा के सदन में काम आता है, मुख्यमंत्री ने ये बैठक अपने घर में बुलाई थी ना कि पार्टी के दफ्तर में.

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सवाल: अशोक गहलोत का आरोप है कि आप बीजेपी के साथ मिलकर सरकार गिराने की कोशिश कर रहे थे?

जवाब: इन दावों में कुछ भी सच नहीं है. मैंने राजस्थान में कांग्रेस को जिताने के लिए जीतोड़ मेहनत की है, मैं क्यों पार्टी के खिलाफ काम करूंगा?

सवाल: अब जब आपको हटा दिया गया है तो आप कांग्रेस में किस तरह आगे बढ़ेंगे?

जवाब: जरा माहौल को शांत होने दीजिए..अभी 24 घंटे भी नहीं हुए हैं. मैं अभी भी कांग्रेस कार्यकर्ता हूं. मुझे अपने समर्थकों के साथ अपने कदम पर चर्चा करनी है.

सवाल: क्या आप बीजेपी में शामिल होंगे? बीजेपी कह रही है कि आपके लिए दरवाजे खुले हैं.

जवाब: मैं पहले ही साफ कर देना चाहता हूं कि भाजपा ज्वाइन नहीं कर रहा हूं. मैं अभी यही कहना चाहता हूं कि मैं अपने लोगों के लिए काम करता रहूंगा.

सवाल: क्या आप भाजपा नेताओं के संपर्क में हैं? क्या आपने ओम माथुर या ज्योतिरादित्य सिंधिया से मुलाकात की?

जवाब: मैं किसी बीजेपी नेता से नहीं मिला हूं. पिछले 6 महीने से ज्योतिरादित्य सिंघिया से नहीं मिला हूं और ना ही ओम माथुर से मिला हूं.

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सवाल: आपके लिए मुख्यमंत्री बनना इतना जरूरी क्यों है? आपकी पार्टी का कहना है कि इतनी कम उम्र में आपको काफी पद दिए गए हैं, क्या आप महत्वाकांक्षी हो रहे हैं?

जवाब: सिर्फ मुख्यमंत्री बनने की बात नहीं है, मैंने मुख्यमंत्री पद की बात तब की थी जब मैंने 2018 में पार्टी की जीत की अगुवाई की थी. मेरे पास सही तर्क थे. जब मैंने अध्यक्ष पद संभाला तो पार्टी 200 में से 21 सीटों पर आ गई थी. पांच साल के लिए मैंने काम किया और गहलोत जी ने एक शब्द भी नहीं बोला. लेकिन चुनाव में जीत के तुरंत बाद गहलोत जी ने मुख्यमंत्री पद के लिए दावा ठोक दिया. अनुभव के मसले पर, उनका क्या अनुभव है?

2018 से पहले वो दो बार मुख्यमंत्री बने हैं, दो चुनाव में उनकी अगुवाई में पार्टी 56 और 26 पर आ पहुंची. इसके बाद भी उन्हें तीसरी बार मुख्यमंत्री बना दिया गया. हां, मैंने राहुल गांधी का फैसला स्वीकारा और वो सीएम बने. राहुल के कहने पर मैं डिप्टी सीएम भी बन गया. राहुल गांधी ने सत्ता का बराबर बंटवारा करने की बात कही थी, लेकिन गहलोत जी ने मुझे साइडलाइन करना शुरू कर दिया.

सवाल: क्या राहुल गांधी ने इस मामले में दखल दिया? आपकी उनसे बात हुई?

जवाब: राहुल गांधी अब कांग्रेस अध्यक्ष नहीं हैं. राहुल ने जब से इस्तीफा दिया, गहलोत जी और उनके AICC के दोस्तों ने मेरे खिलाफ मोर्चा खोल लिया. तभी से मेरे लिए आत्मसम्मान मुश्किल हो गया.

सवाल: क्या गांधी परिवार ने आपसे बात की? आपने उनसे मिलने की कोशिश की?

जवाब: सोनिया गांधी और राहुल गांधी से मेरी कोई बात नहीं हुई. प्रियंका गांधी ने मुझसे बात की थी, लेकिन वो निजी तौर पर चर्चा थी. उससे कोई हल नहीं निकला.

सवाल: आपकी क्या मांग हैं? क्या आप मुख्यमंत्री पद और मंत्रियों के लिए जगह मांग रहे थे?

जवाब: मैंने ऐसी कोई मांग नहीं रखी है. मैंने सिर्फ यही चाहा है कि आत्मसम्मान के साथ काम करने की जगह मिल सके, जो मुझसे वादा किया गया था. मैं फिर कहना चाहता हूं कि ये सत्ता की बात नहीं है, ये आत्मसम्मान की बात है. राजस्थान के सियासी घमासान पर सचिन पायलट का इंटरव्यू
मैंने पांच साल काम किया फिर भी गहलोत बने CM: पायलट
ये सत्ता के संघर्ष की नहीं, बल्कि आत्मसम्मान की बात: सचिन
बीजेपी में शामिल होने की बात पूरी तरह से गलत है: सचिन
राजस्थान में बगावती तेवर दिखाने वाले सचिन पायलट को 14 जुलाई को प्रदेश अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया. अशोक गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोलना सचिन पायलट को भारी पड़ा और कांग्रेस की ओर से आरोप लगाया गया कि पायलट ने भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर सरकार को गिराने का षड्यंत्र रचा है. इस पूरे सियासी खेल के बाद सचिन पायलट ने अपना पहला इंटरव्यू दिया और इंडिया टुडे मैग्जीन से खुलकर बात की. सचिन ने कहा है कि वो भारतीय जनता पार्टी के संपर्क में नहीं हैं और ना ही बीजेपी ज्वाइन कर रहे हैं।

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