गुरुवार, 11 जून 2020

लालू प्रसाद यादव



  11जून 1948को गोपालगंज जिले के फुलवारिया गांव में कुन्दनराय यादव व मराछिया देवी के घर पैदा हुए लालू प्रसाद यादव छात्र नेता,सांसद, मुख्यमंत्री,रेल मंत्री बनने के बाद आज झारखंड की बिरसा मुंडा जेल में बंद है।भारत मे पिछड़ों को न्याय की बात जब भी पटल पर आयेगी लालू प्रसाद यादव का नाम साथ मे जरूर लिया जाएगा।लालूप्रसाद यादव भैंसों के तबेले से जिंदगी की शुरुआत करते है और आज भी उनके घर मे भैंसे बंधी रहती है।अपने जीवन में चाहे किसी पद पर पहुंचे हो मगर अपना रहन सहन वो ही देहाती रखा है।कितने ही ऊँचे पायदान नापे हो मगर अपनी जड़ों पर कायम रहे उसी का नतीजा है कि आज वो भ्रष्टाचार के मामले में जेल में है मगर पूरे देश का पिछड़ा वर्ग उनको सम्मान की नजर से देखता है और बिहार के लोग तो इतने दीवाने है कि कांग्रेस,बीजेपी, जेडीयू  सहित तमाम विरोधी इन चुनावों में लालू नाम के आगे नतमस्तक होते नजर आ रहे है!

लालूप्रसाद यादव 1970में पटना यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन के महासचिव व 1973में अध्यक्ष चुने गए।लालू यादव 1974 में जेपी के बिहार आंदोलन में शामिल हो गए।1977में जनता दल के टिकट पर छपरा से चुनाव लड़ा और उस समय सबसे कम उम्र 29वर्ष में सांसद चुने गए थे।1980 व 1985में बिहार विधानसभा के लिए चुने गए और 1989में कर्पूरी ठाकुर की मृत्यु के बाद वो विधानसभा के नेता बन गए और 1989में ही लोकसभा के लिए चुने गए थे।1989के बाद लालू का दौर बिहार में शुरू होता है।1989में दो घटनाएं घटती है और उन पर कड़ा रुख अपनाने के कारण लालूप्रसाद यादव देशभर में एक मजबूत व अपने स्टैंड पर कायम रहते हुए पिछड़ो,दलितों व अल्पसंख्यकों के नेता के रूप में उभरे।

1989 में बिहार के भागलपुर में साम्प्रदायिक दंगा हुआ और कांग्रेस पार्टी इसको रोकने में असफल हो गई।लालूप्रसाद यादव ने मुसलमानों को विश्वास दिलाया कि आप कांग्रेस छोड़कर मेरे साथ आओ में आपके अधिकारों की रक्षा करूँगा!इस प्रकार एम व वाई का समीकरण बना और लालू यादव की ताकत बढ़ी।1989में ही वीपी सिंह सरकार पर दबाव बनाकर मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू करवा दिया जिससे बाकी पिछड़े वर्ग के लोग भी लालूप्रसाद के साथ जुड़ते गए और 1990 में बिहार के मुख्यमंत्री बन गए।

मंडल के खिलाफ राममंदिर के बहाने सोमनाथ से लालकृष्ण आडवाणी कमंडल का रथ लेकर निकले और देश मे साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण होने लगा।अब लालू प्रसाद यादव की असली परीक्षा होनी थी।जैसे ही लालकृष्ण आडवाणी का रथ 23दिसंबर 1990 को बिहार के समस्तीपुर में घुसा, लालू प्रसाद ने आडवाणी को गिरफ्तार करके कोलकाता ले जाकर छोड़ दिया।इससे अल्पसंख्यको का विश्वास लालूप्रसाद में बढ़ा और आज भी वो डटकर लालूजी के साथ खड़े है।

लालूप्रसाद यादव को सिर्फ राजनैतिक या प्रशासनिक पदों के अनुरूप देखना उनके साथ न्यायसंगत नहीं होगा।लालू के दौर में पहाड़ों में पत्थर तोड़ने वाली दलित भगवंतिया देवी रातों रात संसद की दहलीज पर पहुंच जाती है तो घास-फूस की टाट में जीवन काटने वाले एक मोची का बेटा शिवचंद्र राम बिहार सरकार में कैबिनेट मंत्री बन जाता है व धोबी घाट पर जिंदगी गुजारने वाले श्याम रज्जक को लाल बत्ती की गाड़ी मिल जाती है।लालू ने सदियों से खोबचे में धकेले गए लोगों को मुख्यधारा में लाने का कार्य किया और देखते ही देखते बिहार की बहुसंख्यक जनता खुद को एक अव्वल नागरिक होने व अपना राज होने के लम्हों से अभिभूत हो गई।

मगर देश की ब्राह्मणवादी सत्ता,मीडिया व न्यायपालिका को यह स्वीकार्य नहीं था कि कोई पिछड़े का बेटा उन पर राज करे और षड्यंत्रों का दौर शुरु हो गया।15साल के उनके कार्यकाल को जंगलराज बताया गया था और दुष्प्रचार शुरू कर दिया मगर लालू अपने इरादों से टस से मस नहीं हुए।अपने समर्थकों के साथ ब्राह्मणवादी ताकतों को जवाब देते रहे मगर अपने साथी के धोखे के कारण वो आज जेल में है!

चारा घोटाले का मुख्य आरोपी पूर्व मुख्यमंत्री आज आजाद है मगर चारा घोटाले की जांच का आदेश देने वाला उत्तराधिकारी मुख्यमंत्री जेल में है क्योंकि बाकी आरोपियों के खिलाफ सबूत नहीं मिले और लालूप्रसाद यादव ने शायद चारा खाकर मी लार्ड की टेबल पर ही गोबर कर दिया हो!

1991तक बिहार में शिक्षा में वृद्धि दर 6%थी और 1991से 2001के बीच यह 10%से ज्यादा रही।1990में देश की माली हालात खराब थी व उदारीकरण के दुष्परिणाम के बीच भी बिहार राज्य में समान अवसरों को मद्देनजर रखते हुए 6विश्वविद्यालय खोले गए15 साल के शासनकाल में केंद्र सरकार ने भी बिहार को बहुत ज्यादा आर्थिक मदद नहीं दी!सामंतों का अत्याचार, शासन पर अभिजात्य वर्ग का कब्जा और केंद्र सरकार का बिहार के प्रति दोहरा मापदंड- ऐसी कई चीजें झेलकर शासन करना एक पिछड़े तबके से आने वाले मुख्यमंत्री के लिए आसान नहीं था!

1991में प्राथमिक शिक्षा को मजबूत करने के लिए बिहार शिक्षा परियोजना परिषद की स्थापना की गई और 1995 में देश मे सबसे पहले बिहार में  मिड डे मील की शुरुआत की गई और उस समय हर छात्र को 3किलो अनाज दिया जाता था जिसे वाजपेयी की केंद्र सरकार ने देशभर में लागू किया था।

देश की खराब अर्थव्यवस्था का बिहार पर भी प्रभाव पड़ा और मीडिया ने बीमारू राज्य कहना शुरू कर दिया!पूंजीवादी लुटेरों के हलक में हाथ डालकर जब पूंजी का गरीबों में वितरण हुआ तो कागजी आंकड़ों में जरूर गिरावट दर्ज की गई मगर समाजवादी मॉडल के अनरूप आमजन मजबूत हुआ था।

ब्राह्मणवादी सत्ता,मीडिया व न्यायपालिका ने लालू के रथ को हर समय रोकने की कोशिश की मगर लालू एक ब्रांड के रूप में आगे बढ़ते रहे।लालू को जब सीबीआई कोर्ट में समर्पण करना पड़ा तब अपनी अनपढ़ पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाकर शासन जारी रखा मगर इनको कभी जीतने नहीं दिया।

लालू प्रसाद के समकालीन नेता रहे चौधरी देवीलाल आज दुनियाँ में नहीं है और उनके परिवार को ब्राह्मणवादियों ने दो भागों में विभक्त कर दिया!शरद यादव को ब्राह्मणवादियों के जाल में फंसकर उनके ही साथी ने धोखा दिया तो कोई भी ब्राह्मणवादी पार्टी उनके साथ खड़ी नहीं हुई मगर जेल में बैठा लालू यादव उनकी मदद को आगे आया!मुलायम सिंह ने यूपी में बहुत संघर्ष किया मगर लालू के साथ तुलना की जाए तो वो भी बौने ही नजर आते है।

लालू चाहे आज जेल में हो और पूरी ब्राह्मणवादी ताकतें उनको खत्म करने में लगी हो मगर लालू सामाजिक न्याय व समतामूलक समाज का ऐसा ब्रांड बन चुका है जिसे रोकना संभव नहीं है।भौतिक रूप से भले ही लालू हार जाएं मगर विचारधारा के रूप में लालू ब्रांड सदा मार्गदर्शक बनकर जिंदा रहेगा और आने वाले विधानसभा चुनाव में दुबारा बड़ी ताकत बनकर उभरेगा।


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