धर्मों का जब इतिहास पढ़ते है तो एक चक्र साफ झलकता है कि किसी धर्म मे व्याधियां आ जाती है तो बगावत होती है और नया धर्म जन्म लेता है।
मेरे मन मे भारतीय इतिहास में धर्मों के उदय को लेकर एक जगह शंका हमेशा रही है।वैदिक इतिहास 2300 ईसा पूर्व से बताया जा रहा है।उत्तरवैदिक के बाद रामायण व महाभारत काल बताया जाता रहा है और उसके बाद बुद्ध धम्म की उत्पत्ति हुई!
इतिहास की बारीकियों में हर पन्ने पर संदेह किया जाना चाहिए क्योंकि संदेह किया जाएगा तो सवाल खड़े होंगे और सवाल खड़े होंगे तो जवाब तलाशे जाएंगे!
भारत मे ब्राह्मण धर्म के इतिहास को लेकर जब भी खुदाई की गई तो बुद्ध मिले।यह कोई सामान्य बात नहीं है।कर्नाटक में एक माता का मंदिर गिरा और जब मलबा हटाया जा रहा था तो बौद्ध धर्म के अवशेष नींव में मिले!आंध्र प्रदेश में श्रीराम के मंदिर निर्माण के विस्तार के लिए नींव खोदी गई तो बुद्ध की प्रतिमा मिली!
क्या समझा जाये?अगर बुद्ध से पहले ब्राह्मण धर्म होता तो ब्राह्मणधर्म के मंदिरों के नीचे बुद्ध कैसे मिल रहे है?अगर पुरातात्विक प्रमाणों के हिसाब से देखा जाए व इतिहासकार अपने विवेक से लिखे तो इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि ब्राह्मण धर्म बुद्ध काल के बाद का धर्म है!
बौद्ध धर्म का पतन हर्षवर्धन काल मे माना जा सकता है कि क्योंकि ऐतिहासिक तथ्यों व पुरातात्विक प्रमाणों के हिसाब से अंतिम बौद्ध सम्राट राजा हर्षवर्धन प्रतीत होते है!
फिर 7वीं सदी में गुप्तकाल का चरम आया और स्वर्णकाल बन गया!यकीन मानिए इतिहासकारों ने इसे स्वर्णयुग कहा है और आज भी गाहे-बगाहे वर्ग विशेष इसे स्वर्णयुग, सतयुग,सोने की चिड़िया वाला भारत कह रहा है और इसी काल मे बौद्ध धर्म को भारत से पूर्णतया खत्म किया गया था!
गुप्तकाल के बारे में इतिहास में लंबी-लंबी पोथियाँ लिखी गई है और स्कूल से लेकर पीएचडी करने वाले छात्रों को इसके बारे में पढ़ाया जाता है मगर इस स्वर्णिम युग को स्थापित करने वाले गुप्त राजा कहाँ से आये व कौन लोग थे,यह अध्ययन का विषय है।
शक,हूण, कुषाण आदि राज वंशो का इतिहास हमे पढ़ाया गया व आज भी पढ़ाया जा रहा है और भारतीय इतिहासकार इसे अंधकार युग कहते हुए ज्यादा जानकारी देने से इनकार करते रहे है।अंधकार की आंधी आई और इतिहास के पन्नो पर कुछ राजवंश स्थापित कर दिए गए मगर बाद में राजा हर्षवर्धन को दरकिनार नहीं कर पाए!
गुप्तकाल के बाद भारत मे विदेशी आक्रमण की एक श्रृंखला शुरू हुई और भारत गुलामी के जाल में फंसता गया!सवाल यह है कि गुप्तकाल को लेकर कौन लोग आए और मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक को बुलावा देने वाले/आगमन का माहौल बनाने वाले/मुखबिरी करने वाले कौन लोग थे?
ध्यान देने योग्य बात यह है कि ओरिजिनल मनुस्मृति अंग्रेजों के पास है!
उससे भी बड़ी ध्यान देने वाली बात यह है कि हिटलर जब जर्मनी में विजयी हुआ तो उसकी जीत पर जो रैली हुई उसमे लगाए बैनर-झंडों पर स्वास्तिक का निशान था!वो ही स्वास्तिक चिन्ह जिसको बनाकर भारत मे शुभ मुहर्त,नये कार्यों के शुरुआत की परिकल्पना की जाती है।
एक तथ्य पिछले दिनों मैं पढ़ रहा था कि भागवत गीता किसी बौद्ध कथा का परिष्कृत स्वरूप है मगर जब तक प्रामाणिक तथ्य सामने नहीं आ जाते,ऐसी बातों को तवज्जो नहीं दी जानी चाहिए।बताया यह भी जा रहा है कि जो ॐ का निशान है वो बौद्ध धम्म चक्र में उल्लेखित है और उसी से उठाकर आध्यात्मिक शंखनाद के रूप में अपनाया गया!खैर ये बातें तो उड़ती रहती है मगर बिना उद्गम के कोई सुगन्ध/दुर्गंध नहीं पैदा होती इसलिए पूर्णतया नजरअंदाज भी नहीं किया जाना चाहिए!
एक बात आप सभी ने देखी होगी कि 19वीं सदी के उत्तरार्ध में मुम्बई में एक संगठन बनाया गया "वेदों की तरफ चलो"नारे के साथ।उनके मुख्या ने ॐ शब्द के बजाय "ओ३म" शब्द का उपयोग करना शुरू कर दिया था।
इसलिए कहता हूँ कि इतिहास पढ़ो मिथिहास नहीं और इतिहास के लिए लड़ो-झगड़ों नहीं बल्कि संवाद करो ताकि जो देशभर में जाति-धर्म का संक्रमण फैला हुआ है उसका कोई समाधान निकल जाए!बिना बीमारी की जड़ तक पहुंचे कोई वैक्सीन-दवा नहीं बनाई जा सकती।
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