जाट एक कबीलाई जाती रही है और दुनिया भर के इतिहासकारों को पढ़ते है तो यह साबित होता है कि शिकार युग से खेती युग की तरफ बढ़ते तथ्यों में हर कालखंड में जाट की मौजूदगी रही है।उत्तर भारत का इतिहास पढ़ते है तो लगता है कि जाटों के इतिहास के साथ बहुत नाइंसाफी की गई है।कहा जाता है कि जो कौम अपना इतिहास भूल जाती है उसका वर्तमान इधर-उधर व भविष्य अंधेरे में नज़र आने लगता है।
भारत की किसान जातियों में जाट सबसे बड़ी आबादी में है और आज के हालात देखकर लगता है कि जाट अपना इतिहास भूल चुके है।वर्तमान की जमीं व भविष्य की बुनियाद इतिहास के सबक पर बनती है।
जाटों में मुख्यतया तीन प्रकार के जाट हो गए है।पहला हिंदुत्व वाला जाट,जिसको न वर्तमान का ज्ञान है और न भविष्य की आहट सुनाई देती है बस जाट होने का गौरव करने का झंडा थमा दिया गया है।दूसरा धर्मों में बंटा जाट है किसी को तिलक लगाकर,कलेवा बांधने पर गर्व है तो किसी को जालीदार टोपी पहनने पर गर्व है।किसी को पगड़ी पहनने पर गर्व है तो किसी को बाइबिल में दैवीय चमत्कार नज़र आता है।तीसरा जाट जो हर कदम पर जाट ही बने रहना चाहता है मगर ऊपर के दोनों तरह के जाट इनके जाट होने पर ही सवाल खड़े कर रहा है।
जाट ही नहीं हर किसान जाति यथा यादव,पटेल,गुर्जर, मराठा,कापू,मीणा, मेघवाल आदि की यही हालत है।सबसे बड़ी मजेदार बात यह है कि ये तीनो तरह के लोग अपनी-अपनी जाति के सामाजिक संगठनों के नेता है और किसी न किसी मोड़ पर जातिय स्वाभिमान की जंग में फंसे नज़र आ रहे है।इनके बीच लड़ाई धर्म को लेकर है।धर्म के नाम पर ये लोग आपस मे उलझे हुए है और धर्म की लड़ाई-द्वेष की बुनियाद पर सियासत की दिशा तय करने में लगे हुए है।
चौधरी छोटूराम सिकंदर हयात खान के साथ मिलकर संयुक्त पंजाब में सरकार चला लेते थे,चौधरी चरणसिंह की सभाओं में दाढ़ी वाले व पगड़ी वाले एकसाथ जुटकर उनको प्रधानमंत्री बना देते थे।चौधरी कुम्भाराम आर्य द्वारा किये संघर्ष में जाट-दलित बराबर के लाभार्थी बन जाते थे,बलदेवराम जी मिर्धा,रामदान जी डऊकिया के बनाये किसान बोर्डिंग में सभी जातियों के छात्र रहकर पढ़ते थे।कहने का तात्पर्य यह है कि जाटों की तरक्की के हर कार्य मे,जाट राजनेताओं के हर संघर्ष-लाभ में कभी जाति तक नहीं देखी गई तो फिर यह धर्म की चादर क्यों मजबूत दीवार बनकर खड़ी हो गई कि आपस मे ही जूतमपैजार किये जा रहे है?
अगर जाटों को इतिहास से सबक लेना व वर्तमान में संघर्ष करना है,उसकी बुनियाद पर भविष्य में अपना वजूद बनाये रखना है तो सबसे पहला काम यह करना है कि सब धर्मों की चमत्कारिक कहानियों से खुद को मुक्त करके जाट बनना होगा।जाटों का उज्ज्वल भविष्य सिर्फ और सिर्फ जाट बने रहने में है।जाट सदा से किसान कौम रही है और संघर्ष जाट के जीवन की बुनियाद है।कायर लोग धर्मों में सुरक्षित महसूस करते है।यह जाटों का गुण नहीं है।जाट जिस धर्म मे गया वो धर्म ही खतरे में गया है,जाटों को किसी धर्म से कोई खतरा नहीं है।
जाटों के खून में धर्म नहीं है,जाटों के गुणों में कायरता नहीं है।जाट जितने भी धर्मों में गए,जितने भी नए सम्प्रदाय बनाये मगर अपना जाटपना नहीं छोड़ पाएं है।जब भी जाट संघर्ष के मैदान में खड़ा होता है धर्मों की दीवारे ढहाकर सबसे पहले जाट ही उसके साथ खड़ा होता है और उसके समर्थन में जाटों के स्वाभाविक साथी जो सदियों से उनके साथ भाईचारा बनाकर साथ रहते आयें है।
भगतसिंह को लेकर भी बड़ा अजीब सा संघर्ष छिड़ा हुआ है।इस संघर्ष में कोई और नहीं बल्कि जाट ही आपस मे जूतमपैजार हुए जा रहे है।23 साल के एक युवा ने जो समाज को दिया है उसका अहसान मानकर उनके विचारों पर चलने के बजाय यह तय किया जा रहा है कि भगतसिंह सिक्ख थे,हिन्दू थे,आर्यसमाजी थे या कुछ और?"मैं नास्तिक क्यों हूँ"नामक भगतसिंह का लिखा लेख ये सब लोग पढ़ चुके है मगर अपनी लालसा में उसको धार्मिक बताने की जाहिलयत के खेल को खेल रहे है।
क्या नास्तिक होना,कहना मात्र ही पर्याप्त नहीं है कि उनका किसी भी धर्म से कोई लेना देना नहीं?क्या किसी धर्म के अनुयायी परिवार में पैदा होना उनका गुनाह था?क्या किसी पंथ-सम्प्रदाय से प्रभावित परिवार में पलना-बढ़ना कोई अपराध हो गया था?जब इंसान परिपक्व हो जाता है,अपनी सुध-बुद्ध हासिल कर लेता है और खुद ही मात्र कहता नहीं है कि मैं नास्तिक हूँ बल्कि उससे भी दो कदम आगे जाकर लोगों को समझाने के लिए लिखता है "मैं नास्तिक क्यों हूँ?"क्या यह पर्याप्त नहीं है?
जाट की प्रकृति प्रेमी विरासत को छोड़कर जिन्होंने भी आसमानी किताबों मे अपना भविष्य खोजा, यीशु की आस्था में मुक्ति का मार्ग ढूंढा, पगड़ियों का स्वरूप बदला, लकड़ फूंकने में जीवन की शुद्धता को खोजा वो सब जाटों को बिखेरने के शगूफे थे और धार्मिक कट्टरता की पौथीयों का वाचन करके उनको कायर बनाया गया था बाकी जाट जहां खड़ा हो जाता था वो इतिहास बन गया और भारत का भविष्य भी वो जाट निर्धारित करेंगे जो सिर्फ और सिर्फ जाट बनकर लड़ेंगे
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