गुरुवार, 9 जुलाई 2020

राजस्थान में मृत्यु भोज पर प्रतिबंध

राजस्थान सरकार ने मृत्यु भोज निवारण अधिनियम बनने के 60 साल बाद कानूनी प्रावधानों के अनुसार इसे पूरी तरह बंद करने का निर्णय लिया।

लगे हाथ यदि प्रस्तावित मृत्यु भोज की प्रशासन को सूचना देने वाले जागरूक नागरिक के संबंध में जानकारी गुप्त रखने के निर्देश जारी कर दिए जाएं तो फिर यह सदा सदा के लिए बंद भी हो सकता है।

अतीत में किसानों और पशुपालकों की बर्बादी का पर्याय हो चुके इस मृत्युभोज को बंद करने के लिए किसान नेता बलदेव रामजी मिर्धा ने इसके खिलाफ मारवाड़ के गांव-गांव में अलख जगाई थी। 

बाद में इसे पूरी तरह बंद करने के लिए कुंभारामजी आर्य के प्रयासों से मृत्युभोज निवारण अधिनियम 1960 बनाया गया।

परंतु 1960 के बाद की सरकारों की इच्छाशक्ति के अभाव में यह अधिनियम सुप्त अवस्था में पड़ा रहा। जिससे किसान कामगार पशुपालक दिनोंदिन कर्ज में डूबते रहे।

60 साल बाद कल अंधविश्वास और पाखंड के खिलाफ जन आंदोलन चला रहे आईपीएस किशन सहाय मीणा ने इस अधिनियम को सख्ती से लागू करने के आदेश जारी किए।

इसी कड़ी में आज राजस्थान सरकार ने भी अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए इसे कानूनी प्रावधानों के अनुसार बंद करने का निर्णय लिया।

हम जानते हैं कि लॉक डाउन के चलते इन दिनों शादी के अतिरिक्त किसी भी प्रकार का समारोह बैठक मीटिंग शोक सभा इत्यादि करना गैरकानूनी है।

एक राष्ट्रीय आपदा के कारण ऐसा करना मानव जीवन को संकट डालने वाला कृत्य है। फिर भी बड़े पैमाने के मृत्युभोज अपराध जारी है।

ऐसे में राजस्थान सरकार का मृत्यु भोज अपराध कारित करने वाले मृतक के परिजनों, रिश्तेदारों, पंचों, हेलवाइयों, पंडितों  इत्यादि के खिलाफ सख्त हो जाना एक बेहद क्रांतिकारी कदम है।

स्वतंत्र राजस्थान के इतिहास में पहला मौका है जब किसी राजनेता ने इस बुराई के खिलाफ अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाई है। जिसका प्रदेश के प्रत्येक जागरूक नागरिक की तरफ से खुले दिल से स्वागत होना चाहिए।

राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में मृत्युभोज का पैमाना बहुत बड़ा होता है। मेवाड़ हाडोती डांग इत्यादि इलाकों में मारवाड़ की अपेक्षाकृत मृत्युभोज थोड़े कम पैमाने के होते हैं। कानूनी प्रावधानों को यदि देखा जाए राजस्थान में प्रत्येक मृतक के घर पर मृत्युभोज अपराध कारित होता है। 

इसलिए सरकार को सर्कुलर जारी करना चाहिए कि किसी भी व्यक्ति की मृत्यु की सूचना मिलने के बाद ग्राम पंचायत के सरकारी कारिंदे पुलिस व प्रशासन को सूचना देने के साथ-साथ उसके परिजनों को ऐसा नहीं करने के लिए पाबंद करें।

Partly Cloudy today!



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July 9, 2020 at 04:00PM

बुधवार, 8 जुलाई 2020

Scattered Thunderstorms today!



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July 8, 2020 at 04:00PM

मंगलवार, 7 जुलाई 2020

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July 7, 2020 at 04:00PM

सोमवार, 6 जुलाई 2020

बड़ी खबर... जयपुर गैंगस्टर राजू ठेहट को मिली पैरोल


राजस्थान हाईकोर्ट ने 20 दिन की पैरोल पर रिहा करने के दिए आदेश
गैंगस्टर राजू ठेहट को पैरोल मिलने से पुलिस महकमें में चर्चा
पुलिस ने जताई थी पैरोल के दौरान अपराध की आशंका
क्योंकि— कुख्यात आनंदपाल व राजू ठेहट की गैंग में है आपसी दुश्मनी
दुश्मनी की वहज से गैंगवार में एक दूसरे गैंग के कई गु्र्गे मारे जा चुके
हाईकोर्ट जस्टिस सबीना, जस्टिस सीके सोनगरा की खण्डपीठ ने दिये आदेश
सरकार और पुलिस ने किया पैरोल पर रिहा नहीं करने का किया अनुरोध
सीकर जिला पैरोल कमेटी ने किया था ठेहट को पैरोल देने से इंकार
सीकर पुलिस अधीक्षक ने भी पैरोल को लेकर जताई थी आशंका
ठेहट को पैरोल मिलने पर गंभीर अपराध की जताई थी आशंका
ठेहट के पैरोल से फरार होने की भी पुलिस ने जताई थी आशंका
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग ने भी किया इंकार
पैरोल स्वीकृत करने की अनुशंसा से किया था इंकार
हाईकोर्ट में राजकीय अधिवक्ता एनएस गुर्जर ने भी जताया विरोध
जेल में बिताए 7 साल की अवधि और व्यवहार के आधार पर दी पैरोल

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Scattered Thunderstorms today!



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Sunset: July 6, 2020 at 07:35PM

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July 6, 2020 at 04:00PM

रविवार, 5 जुलाई 2020

सिख, जैनी, पारसी और बनिये



ये वो चार वर्ग हैं जिनकी धारणा है कि युवक-युवतियों को पढाई-लिखाई के साथ-साथ कोई न कोई व्यवसाय करना सीखना चाहिए, क्योंकि एक दुकान से पूरे परिवार को रोजगार मिलता है।

अगर किसी भी कारण इनके बच्चे पढने-लिखने में कमजोर या नालायक भी निकल जाएं तब भी उन्हें चिंता नही सताती क्योंकि कुछ न कर पाने की स्थिति में भी उनका बच्चा परिवार का व्यवसाय संभाल लेगा।

पढने-लिखने के बाद नौकरी नहीं मिले तो स्वयं का कारोबार करने से बेहतर कोई अन्य विकल्प नहीं मानते हैं, शायद यही वजह है कि इन कौमों में कभी मजदूर या भिखारी नही पैदा होते।

चीजों को वास्तविकता के धरातल पर भी देखें तो मजदूर अधिकतम 50 वर्ष की उम्र तक मजदूरी करने की शारीरिक क्षमता रखता है और जीवन भर मजबूर बना रहता है।

आधी उम्र घिसाकर सरकारी नौकरी पाने वाला व्यक्ति भी अधिकतम 60 वर्ष की उम्र तक ही नौकरी कर सकता है, और तब भी उसके बच्चों का भविष्य अनिश्चित बना रहता है।

इसके विपरीत व्यवसाय करने वाला व्यक्ति मरते दम तक दुकानदारी करने की मानसिक क्षमता रखता है और उनका व्यवसाय पीढी-दर-पीढी आगे बढ़ता रहता है।

इनके बच्चे पढ-लिख कर नौकरी करें तो ठीक, नहीं तो व्यवसाय में अधिक से अधिक आर्थिक विकास करते रहते हैं। व्यवसाय में पतले, मोटे, नाटे, विकलांग, बदसूरत सभी जायज माने जाते हैं क्योंकि व्यवसाय में दिमाग की जरूरत होती है जबकि मजदूरी में शारीरिक दमखम की।

फैसला आपके हाथ में है... चाहे तो बच्चों को पढने-लिखने के अतिरिक्त कोई न कोई व्यवसाय सिखाकर आत्मनिर्भर बना दीजिए, चाहे पीढ़ी दर पीढ़ी वही जीरो से शुरू होने वाली रेस का खिलाड़ी?

पढ़-लिख गया तो ठीक वरना ईंट, पत्थर, गारा, फावड़ा उसका इंतजार कर ही रहा होगा। अत: अपने दिमाग के घूंघट के पट खोलिये, नौकरी माँगने वाला नही देने वाला बनिये।

सामान्य ज्ञान