बॉलीवुड एक्ट्रेस रेखा का सिक्यॉरिटी गार्ड मंगलवार को कोरोना संक्रमित पाया गया। रेखा के बाकी स्टाफ का टेस्ट किया गया है। गार्ड का ट्रीटमेंट चल रहा है। रेखा के बंगले का सैनिटाइजेशन भी किया जा चुका है।...
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रविवार, 12 जुलाई 2020
अमिताभ बच्चन के कोरोना पॉजिटिव आने पर बोले अनुपम खेर- देश को भरोसा आप जरूर कोरोना की लड़ाई में जीतेंगे बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन और उनके बेटे अभिनेता अभिषेक बच्चन के शनिवार को कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद विभिन्न क्षेत्रों की प्रमुख हस्तियों ने दोनों के जल्द ठीक होने की कामना की है। बॉलीवुड...
बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन और उनके बेटे अभिनेता अभिषेक बच्चन के शनिवार को कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद विभिन्न क्षेत्रों की प्रमुख हस्तियों ने दोनों के जल्द ठीक होने की कामना की है। बॉलीवुड...
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शनिवार, 11 जुलाई 2020
भारतीय इतिहास में धर्मों के उदय को लेकर एक जगह शंका
धर्मों का जब इतिहास पढ़ते है तो एक चक्र साफ झलकता है कि किसी धर्म मे व्याधियां आ जाती है तो बगावत होती है और नया धर्म जन्म लेता है।
मेरे मन मे भारतीय इतिहास में धर्मों के उदय को लेकर एक जगह शंका हमेशा रही है।वैदिक इतिहास 2300 ईसा पूर्व से बताया जा रहा है।उत्तरवैदिक के बाद रामायण व महाभारत काल बताया जाता रहा है और उसके बाद बुद्ध धम्म की उत्पत्ति हुई!
इतिहास की बारीकियों में हर पन्ने पर संदेह किया जाना चाहिए क्योंकि संदेह किया जाएगा तो सवाल खड़े होंगे और सवाल खड़े होंगे तो जवाब तलाशे जाएंगे!
भारत मे ब्राह्मण धर्म के इतिहास को लेकर जब भी खुदाई की गई तो बुद्ध मिले।यह कोई सामान्य बात नहीं है।कर्नाटक में एक माता का मंदिर गिरा और जब मलबा हटाया जा रहा था तो बौद्ध धर्म के अवशेष नींव में मिले!आंध्र प्रदेश में श्रीराम के मंदिर निर्माण के विस्तार के लिए नींव खोदी गई तो बुद्ध की प्रतिमा मिली!
क्या समझा जाये?अगर बुद्ध से पहले ब्राह्मण धर्म होता तो ब्राह्मणधर्म के मंदिरों के नीचे बुद्ध कैसे मिल रहे है?अगर पुरातात्विक प्रमाणों के हिसाब से देखा जाए व इतिहासकार अपने विवेक से लिखे तो इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि ब्राह्मण धर्म बुद्ध काल के बाद का धर्म है!
बौद्ध धर्म का पतन हर्षवर्धन काल मे माना जा सकता है कि क्योंकि ऐतिहासिक तथ्यों व पुरातात्विक प्रमाणों के हिसाब से अंतिम बौद्ध सम्राट राजा हर्षवर्धन प्रतीत होते है!
फिर 7वीं सदी में गुप्तकाल का चरम आया और स्वर्णकाल बन गया!यकीन मानिए इतिहासकारों ने इसे स्वर्णयुग कहा है और आज भी गाहे-बगाहे वर्ग विशेष इसे स्वर्णयुग, सतयुग,सोने की चिड़िया वाला भारत कह रहा है और इसी काल मे बौद्ध धर्म को भारत से पूर्णतया खत्म किया गया था!
गुप्तकाल के बारे में इतिहास में लंबी-लंबी पोथियाँ लिखी गई है और स्कूल से लेकर पीएचडी करने वाले छात्रों को इसके बारे में पढ़ाया जाता है मगर इस स्वर्णिम युग को स्थापित करने वाले गुप्त राजा कहाँ से आये व कौन लोग थे,यह अध्ययन का विषय है।
शक,हूण, कुषाण आदि राज वंशो का इतिहास हमे पढ़ाया गया व आज भी पढ़ाया जा रहा है और भारतीय इतिहासकार इसे अंधकार युग कहते हुए ज्यादा जानकारी देने से इनकार करते रहे है।अंधकार की आंधी आई और इतिहास के पन्नो पर कुछ राजवंश स्थापित कर दिए गए मगर बाद में राजा हर्षवर्धन को दरकिनार नहीं कर पाए!
गुप्तकाल के बाद भारत मे विदेशी आक्रमण की एक श्रृंखला शुरू हुई और भारत गुलामी के जाल में फंसता गया!सवाल यह है कि गुप्तकाल को लेकर कौन लोग आए और मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक को बुलावा देने वाले/आगमन का माहौल बनाने वाले/मुखबिरी करने वाले कौन लोग थे?
ध्यान देने योग्य बात यह है कि ओरिजिनल मनुस्मृति अंग्रेजों के पास है!
उससे भी बड़ी ध्यान देने वाली बात यह है कि हिटलर जब जर्मनी में विजयी हुआ तो उसकी जीत पर जो रैली हुई उसमे लगाए बैनर-झंडों पर स्वास्तिक का निशान था!वो ही स्वास्तिक चिन्ह जिसको बनाकर भारत मे शुभ मुहर्त,नये कार्यों के शुरुआत की परिकल्पना की जाती है।
एक तथ्य पिछले दिनों मैं पढ़ रहा था कि भागवत गीता किसी बौद्ध कथा का परिष्कृत स्वरूप है मगर जब तक प्रामाणिक तथ्य सामने नहीं आ जाते,ऐसी बातों को तवज्जो नहीं दी जानी चाहिए।बताया यह भी जा रहा है कि जो ॐ का निशान है वो बौद्ध धम्म चक्र में उल्लेखित है और उसी से उठाकर आध्यात्मिक शंखनाद के रूप में अपनाया गया!खैर ये बातें तो उड़ती रहती है मगर बिना उद्गम के कोई सुगन्ध/दुर्गंध नहीं पैदा होती इसलिए पूर्णतया नजरअंदाज भी नहीं किया जाना चाहिए!
एक बात आप सभी ने देखी होगी कि 19वीं सदी के उत्तरार्ध में मुम्बई में एक संगठन बनाया गया "वेदों की तरफ चलो"नारे के साथ।उनके मुख्या ने ॐ शब्द के बजाय "ओ३म" शब्द का उपयोग करना शुरू कर दिया था।
इसलिए कहता हूँ कि इतिहास पढ़ो मिथिहास नहीं और इतिहास के लिए लड़ो-झगड़ों नहीं बल्कि संवाद करो ताकि जो देशभर में जाति-धर्म का संक्रमण फैला हुआ है उसका कोई समाधान निकल जाए!बिना बीमारी की जड़ तक पहुंचे कोई वैक्सीन-दवा नहीं बनाई जा सकती।
Nepal में दूरदर्शन को छोड़कर सभी भारतीय न्यूज चैनल बंद, जानें क्या है कारण
नेपाल ने दूरदर्शन को छोड़कर अन्य सभी भारतीय समाचार चैनलों का प्रसारण बंद करते हुए आरोप लगाया कि वो ऐसी खबरें दिखा रहे हैं जिससे देश की राष्ट्रीय भावनाएं आहत हो रही हैं.
भारत के साथ जारी तनातनी के बीच नेपाल में केबल ऑपरेटर्स ने अपने देश में सभी भारतीय निजी न्यूज चैनलों पर प्रतिबंध लगा दिया है. हालांकि उनके इस प्रतिबंध से दूरदर्शन को बाहर रखा गया है. भारत और नेपाल को लेकर तनाव जारी है. हालांकि इस संबंध में कोई आधिकारिक आदेश जारी नहीं किया गया है.
यह कदम भारतीय न्यूज चैनलों द्वारा नेपाल के कवरेज को लेकर ऑनलाइन स्तर पर हुई भारी आलोचना के मद्देनजर लिया गया है, इसमें नेपाली नेतृत्व को लेकर खराब छवि पेश की गई थी. नेपाल में मेगा मैक्स टीवी के उपाध्यक्ष ध्रुव शर्मा ने बताया कि चैनल के वितरकों ने 09 जुलाई 2020 को शाम से सरकारी स्वामित्व वाले दूरदर्शन को छोड़कर सभी भारतीय समाचार चैनलों के प्रसारण को निलंबित करने का फैसला किया है.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, नेपाल ने दूरदर्शन को छोड़कर अन्य सभी भारतीय समाचार चैनलों का प्रसारण बंद करते हुए आरोप लगाया कि वो ऐसी खबरें दिखा रहे हैं जिससे देश की राष्ट्रीय भावनाएं आहत हो रही हैं. इस मुद्दे पर भारत की ओर से तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. यह फैसला ऐसे समय आया है जब भारत और नेपाल के बीच नेपाली नक्शे को लेकर विवाद चल रहा है.
मल्टी सिस्टम ऑपरेटर (एमएसओ) के अध्यक्ष, विदेशी चैनल के वितरक दिनेश सुबेदी ने यहां संवाददाताओं को बताया कि हमनें दूरदर्शन को छोड़कर सभी भारतीय समाचार चैनलों का प्रसारण रोक दिया है. उन्होंने कहा कि हमनें भारत के निजी समाचार चैनलों का प्रसारण रोक दिया है क्योंकि वे नेपाल की राष्ट्रीय भावनाओं को आहत करने वाली खबरें दिखा रहे थे.
पृष्ठभूमि
हाल ही में नेपाल ने अपने नए नक्शे में कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा के इलाकों को अपने क्षेत्रों के रूप में दर्शाया है, जबकि रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण यह इलाके भारत का हिस्सा हैं. नए नक्शे को संसद से मंजूरी मिल गई है. सीमा विवाद के कारण भारत और नेपाल के बीच इन दिनों रिश्ते तनावपूर्ण चल रहे हैं. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 08 मई 2020 को लिपुलेख से धाराचूला तक बनाई गई एक सड़क का उद्घाटन किया था. लेकिन नेपाल ने लिपुलेख को अपना हिस्सा बताते हुए विरोध किया था.
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July 11, 2020 at 04:00PM
शुक्रवार, 10 जुलाई 2020
Partly Cloudy today!
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Current wind speeds: 14 from the Southwest
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Sunset: July 10, 2020 at 07:34PM
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July 10, 2020 at 04:00PM
गुरुवार, 9 जुलाई 2020
राजस्थान में मृत्यु भोज पर प्रतिबंध
राजस्थान सरकार ने मृत्यु भोज निवारण अधिनियम बनने के 60 साल बाद कानूनी प्रावधानों के अनुसार इसे पूरी तरह बंद करने का निर्णय लिया।
लगे हाथ यदि प्रस्तावित मृत्यु भोज की प्रशासन को सूचना देने वाले जागरूक नागरिक के संबंध में जानकारी गुप्त रखने के निर्देश जारी कर दिए जाएं तो फिर यह सदा सदा के लिए बंद भी हो सकता है।
अतीत में किसानों और पशुपालकों की बर्बादी का पर्याय हो चुके इस मृत्युभोज को बंद करने के लिए किसान नेता बलदेव रामजी मिर्धा ने इसके खिलाफ मारवाड़ के गांव-गांव में अलख जगाई थी।
बाद में इसे पूरी तरह बंद करने के लिए कुंभारामजी आर्य के प्रयासों से मृत्युभोज निवारण अधिनियम 1960 बनाया गया।
परंतु 1960 के बाद की सरकारों की इच्छाशक्ति के अभाव में यह अधिनियम सुप्त अवस्था में पड़ा रहा। जिससे किसान कामगार पशुपालक दिनोंदिन कर्ज में डूबते रहे।
60 साल बाद कल अंधविश्वास और पाखंड के खिलाफ जन आंदोलन चला रहे आईपीएस किशन सहाय मीणा ने इस अधिनियम को सख्ती से लागू करने के आदेश जारी किए।
इसी कड़ी में आज राजस्थान सरकार ने भी अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए इसे कानूनी प्रावधानों के अनुसार बंद करने का निर्णय लिया।
हम जानते हैं कि लॉक डाउन के चलते इन दिनों शादी के अतिरिक्त किसी भी प्रकार का समारोह बैठक मीटिंग शोक सभा इत्यादि करना गैरकानूनी है।
एक राष्ट्रीय आपदा के कारण ऐसा करना मानव जीवन को संकट डालने वाला कृत्य है। फिर भी बड़े पैमाने के मृत्युभोज अपराध जारी है।
ऐसे में राजस्थान सरकार का मृत्यु भोज अपराध कारित करने वाले मृतक के परिजनों, रिश्तेदारों, पंचों, हेलवाइयों, पंडितों इत्यादि के खिलाफ सख्त हो जाना एक बेहद क्रांतिकारी कदम है।
स्वतंत्र राजस्थान के इतिहास में पहला मौका है जब किसी राजनेता ने इस बुराई के खिलाफ अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाई है। जिसका प्रदेश के प्रत्येक जागरूक नागरिक की तरफ से खुले दिल से स्वागत होना चाहिए।
राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में मृत्युभोज का पैमाना बहुत बड़ा होता है। मेवाड़ हाडोती डांग इत्यादि इलाकों में मारवाड़ की अपेक्षाकृत मृत्युभोज थोड़े कम पैमाने के होते हैं। कानूनी प्रावधानों को यदि देखा जाए राजस्थान में प्रत्येक मृतक के घर पर मृत्युभोज अपराध कारित होता है।
इसलिए सरकार को सर्कुलर जारी करना चाहिए कि किसी भी व्यक्ति की मृत्यु की सूचना मिलने के बाद ग्राम पंचायत के सरकारी कारिंदे पुलिस व प्रशासन को सूचना देने के साथ-साथ उसके परिजनों को ऐसा नहीं करने के लिए पाबंद करें।
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