रविवार, 31 मई 2020

अमेरिका में जॉर्ज लॉयड नाम के एक अश्वेत का श्वेत पुलिस अधिकारी ने गला दबा दिया जिससे उसकी मृत्यु हो गई। In America, a black policeman named George Lloyd was strangled by a white police officer who died.

अमेरिका में जॉर्ज लॉयड नाम के एक अश्वेत का श्वेत पुलिस अधिकारी ने गला दबा दिया जिससे उसकी मृत्यु हो गई।ट्रम्प सरकार ने पुलिस अधिकारी पर हत्या का मुकदमा दर्ज करने में देरी की और अमेरिका के 20 बड़े शहर आग की चपेट में है।लॉक डाउन को तोड़कर लोग सड़कों पर है और हाथों में "Black's Lives matters"अर्थात कालों की जिंदगी भी मायने रखती है,तख्तियां लिए हुए है।

भारत मे हजारों सालों से बहुत बड़ी आबादी को विभिन्न षड्यंत्रों के माध्यम से शिक्षा से वंचित करके रखा गया था तो बोलने का सवाल ही पैदा नहीं होता।आजादी के बाद संविधान लागू हुआ तो लगा अब सवेरा हुआ मगर जैसे-जैसे शिक्षा का उजियारा फैला और लोग हकों-अधिकारों के लिए बोलने लगे तो जुबानें नोची जाने लगी,धमकियां दी जानी लगी,हत्याएं तक कर दी गई मगर  उनके समर्थन में भारत का समाज कभी खड़ा नहीं हुआ।Because most people's lives doesn't matter!

जो समाज अन्याय व अत्याचार की पराकाष्ठा के षड्यंत्र की बेड़ियों को तोड़ने में असफल पाता है वो एक कुंठाग्रस्त समाज तैयार कर रहा होता है।जो समाज छुआछूत जैसी सामाजिक भेदभाव की बुराइयां कानून के हवाले छोड़ देता है,अपने गिरेबाँ में झांकने से परहेज करने लगता है वो भविष्य मे बगावत की चिंगारियां सहेज रहा होता है।भारत एक जातियों का समूह देश है जिसे धर्मों का देश बनाने का प्रयास चल रहा है जिसके बल पर तथाकथित श्रेष्ठ जातियों की श्रेष्ठता बरकरार रखी जा सके।अब शिक्षा सिर्फ शिक्षा नीतियों की पिछलग्गू नहीं रही बल्कि हर इंसान दुनियाँ का हर ज्ञान घर बैठे हासिल कर सकता है।इसलिए अब वर्तमान इतिहास की तरफ कभी न लौट सकेगा।वर्तमान भविष्य की तरफ ही बढ़ेगा।

मार्क्स जब विचार दे रहा था तब दुनियाँ ने उनके विचार महान नहीं माने थे बल्कि लेनिन ने उन विचारों के बल पर क्रांति करके उनके विचारों को महान बना दिया था।बाबा साहब के विचारों को खुद बाबा साहब अपने जीवन मे मूरत  रूप नहीं दे सके मगर कांशीराम जी ने उनके विचारों को लेकर पूरे भारत मे क्रांति की नींव रखकर महान बना दिया।आज से पांच साल पहले चौधरी छोटूराम को गिने-चुने लोग ही जानते थे मगर भाई मनोज दुहन ने घर-घर चौधरी छोटूराम को पहुंचा दिया है।

जो समाज अपनी बौद्धिक संपदा को संभालने में नाकाम हो जाता है,उनकी गुलामी की बेड़ियों को कोई नहीं तोड़ सकता।जो समाज अपने बुद्धिजीवी लोगों का समर्थन व सरंक्षण नहीं कर सकता वो तरक्की की राहों पर कभी नहीं आ सकता।भारत में भाईचारे का टेंडर महाराष्ट्र में मराठों के सिर,कर्नाटक में गौड़ा व लिंगायतों के सिर,आंध्रप्रदेश में कापू के सिर,गुजरात मे पटेलों के सिर,राजस्थान में जाट गुर्जरों के सिर,यूपी-बिहार में यादवों के सिर,हरियाणा-पंजाब में जाटों के सिर पर रखा गया है।किसान जातियाँ चुपचाप श्रेष्ठी वर्ग की लठैत बनकर एससी, एसटी व माइनॉरिटी के खिलाफ में खड़ी रहे,हक मांगा तो पूरा सिस्टम देश विरोधी,सामाजिक सौहार्द्र बिगाड़ने वाले,बलात्कारी,गद्दार न जाने क्या-क्या शगूफे लेकर खड़ा हो जाता है और हक मांगने वालों को कठघरे में खड़ा कर देता है।हक मांगने वाले के समाज के लोग ही हकों को भूलकर भाईचारे के दलाल बन जाते है!

भारत मे जाति आधारित जनगणना और "जिसकी जितनी हिस्सेदारी,उसकी उतनी भागीदारी"ही एकमात्र सामाजिक सौहार्द्र का उपाय है मगर उस पर कोई चर्चा करना नहीं चाहता।जिस समाज के बुद्धिजीवी लोगों की कद्र समाज के राजनेता,सामाजिक संगठन और इनसे जुड़े लोग बंद कर देते है तो दूसरे लोग उन पर हावी होने लग जाते है।चलो माफी मंगवाकर तुम लोग भाईचारे की लीपापोती कर लोगे मगर जमीनी हकीकत बदलने की हिम्मत तुम्हारे अंदर है?दिलों में पैदा आक्रोश को तुम कब तक थाम पाओगे!

माना जाना चाहिए कि कुछ दिनों के लिए तुम लोग आवाज दबाकर खुशियां मना लोगे जिस तरह ओबीसी आयोग के मुद्दे पर बाबा साहेब को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया था मगर यह झूठ-फरेब की बुनियाद पर खड़ा अहंकार का साम्राज्य एक न एक दिन जरूर ढहेगा।7साल पहले एक किताब लिख दी उससे भावना आहत हो गई!7साल पहले एक बात कह दी उससे अब भाईचारा बिगड़ रहा है!तुलसीदास ने 500 साल पहले लिखा "ढोर, गंवार,क्षुद्र पशु नारी,ये सब ताड़न के अधिकारी!"क्या उनके ऊपर या उनकी चौपाइयों का प्रचार-प्रसार करने वालों के ऊपर हम एससी/एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करवाने की धमकी दें?क्या देश की महिलाएं उनके खिलाफ महिला उत्पीड़न के मुकदमे करें या इनके खिलाफ सड़कों पर आंदोलन करें?

अमेरिका में अश्वेतों ने लंबी लड़ाई लड़ी,मुख्य न्यायाधीश से लेकर राष्ट्रपति तक अश्वेत बनाये गए मगर 1963 में वांशिगटन में "I have a dream"भाषण दिया था उस सपने की खाई को नीतियों से नहीं पाटा जा सका क्योंकि श्वेतों की नीयत खराब थी इसलिए एक अश्वेत की मौत का विभत्स स्वरूप सामने आया और आज 21वीं सदी का सुपर पावर आग के हवाले है।देर सवेर दुनियाँ के हर समाज को जो दूसरों को नीचा समझने,दबाने की कोशिश में लगा है उसे इन्हीं राहों से गुजरने होगा।हम चाहते है कि भेदभाव की दीवारें गिरे,समतामूलक समाज की स्थापना हो और हमारा मुल्क महफूज रहे।ये हवाई समझौते,दबाव धमकियां,मुकदमें आदि सामाजिक न्याय की लड़ाई को थोड़े समय के लिए रोक तो सकते है मगर भविष्य के लिए बारूद के ढेर सरीखे हो जाते है।
साभार
प्रेमाराम 
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                    English translation
In America, a black policeman named George Lloyd was strangled by a white police officer who died. The Trump government delayed filing a murder case against a police officer and 20 large cities in the US are under fire.  People are on the streets, and "Black's Lives matters" in their hands, that means the lives of Blacks also matter, with placards.


 In India, for thousands of years, a large population was denied education through various conspiracies, then there is no question of speaking. After independence, the Constitution came into force, but now it became dawn, but as the power of education spread and  When people started speaking for rights, the tongues started being shunned, threats were made, even murders were committed, but India's society never stood up in support of them. Because most people's lives doesn't matter!


 The society which fails to break the shackles of conspiracy to perpetuate injustice and tyranny is preparing a frustrated society. The society leaves the evils of social discrimination like untouchability under the law, avoiding peeping into its fall  He is saving the sparks of revolt in the future. India is a group of castes that is trying to make a country of religions, on whose strength the superiority of the so-called superior castes can be maintained. Now education is not just a backlog of education policies.  Rather, every human being can gain all the knowledge of the world from home. Therefore, we will never be able to return to the present history. The present will only move towards the future.


 When Marx was giving ideas, the world did not consider his ideas to be great, but Lenin revolutionized those ideas and made his ideas great. Baba Saheb's ideas could not be sculpted in his life but  Kanshi Ram ji made his ideas great by laying the foundation of revolution in the whole of India. Five years before today, only a few people knew Chaudhary Chhoturam but brother Manoj Duhan has delivered Chaudhary Chhoturam.


 A society which fails to handle its intellectual property, no one can break the shackles of their slavery. A society which cannot support and protect its intellectual people can never come on the path of progress. Tender of brotherhood in India  Heads of Marathas in Maharashtra, heads of Gowda and Lingayats in Karnataka, heads of Kapu in Andhra Pradesh, heads of Patels in Gujarat, heads of Jat Gurjars in Rajasthan, heads of Yadavas in UP-Bihar, heads of Jats in Haryana-Punjab  The peasant castes silently stand against the SC, ST and Minority as the lathis of the superior class, if the right system demands, the whole system stands up with respect to the anti-national, social harmony, rapist, traitor.  Those who demand rights stand in the dock. Only those of the society who demand rights forget the entitlements and become brokers of brotherhood!


 Caste-based census in India and "whose share, as much as its participation" is the only social harmony solution but no one wants to discuss it. The social intelligentsia, social organizations and the people associated with the society should be closed.  If you give, other people start dominating them. Lets apologize, you will smuggle the brotherhood but you have the courage to change the ground reality? How long will you be able to hold the resentment in the hearts!


 It should be assumed that for a few days you will celebrate by pressing your voice, just as Baba Saheb was forced to resign on the issue of the OBC Commission, but this empire of arrogance, which lies on the foundation of falsehood, must one day  Will collapse. Writing a book 7 years ago, it hurt sentiment! Feminism is being spoiled by him saying one thing 7 years ago! Tulsidas wrote 500 years ago, "Dumb, boorish, petty animal woman, all these are officials of Tarden!"  Should we threaten to file a lawsuit under the SC / ST Act against them or those who propagate their chaupis? Should the women of the country file women harassment cases against them or agitate against them in the streets?


 In America, blacks fought a long battle, blacks were made from Chief Justice to President, but in 1963 he gave an "I have a dream" speech at Wanshigton, that dream gap could not be bridged by policies because white intentions were poor so one  Different forms of black death have emerged and today the 21st century super power has been set on fire. Every morning, every society in the world, which is trying to understand and suppress others, will have to go through these paths. We want that  The walls of discrimination have fallen, an egalitarian society should be established and our country safeguards. These air pacts, pressure threats, lawsuits etc. can stop the fight for social justice for a short time but ammunition piles up for the future.

 Sincerely

 

बुधवार, 27 मई 2020

सूरत में पेट भर खाना न मिलने की शिकायत करने पर, 8 नाबालिक समेत 90 लोग गिरफ्तारदेश के 'गद्दार' खाना मांग रहे थे

सूरत में प्रवासी मजदूरों ने पेट भर खाना न मिलने की शिकायत की, हंगामा किया कि वे अपने गांव जाना चाहते हैं. 8 नाबालिग समेत 90 लोग गिरफ्तार हुए. सूरत में करीब 1300 लोगों के खिलाफ मामले दर्ज हुए हैं.

यह सही है ​कि हर राज्य में सरकार तमाम लोगों को खाना खिला रही है, चुनौती बड़ी है, फिर भी तमाम लोग खाना न मिलने की शिकायत कर रहे हैं. सरकार को यह बात समझनी चाहिए कि कोरोना का भय भूख नहीं मिटा सकता. कोरोना का डर भूख की पीड़ा और भय से बड़ा नहीं है.

सरकार से अपील है कि वह पेट के लिए किसी को अपराधी न बनाए. भूखे लोग सड़कों पर निकल कर अपनी ही जान संकट में डाल रहे हैं. खाना न मिलने पर भी उनकी जान संकट में है. उनके आगे कुआं है, पीछे खाईं.

मुख्यमंत्रियों को चाहिए कि वे दो चार दिन भूखे रहकर देखें कि भूख की छटपटाहट कैसी होती है. लाठी भांजकर क्रूरता प्रदर्शन के और बहुत से मौके आएंगे. फिलहाल एसी कार्रवाई रोक देनी चाहिए और कोरोना से लड़ने के ​लिए करुणा जी को भाषण से बाहर ले आना चाहिए.

(ये लेख पत्रकार कृष्णकांत के फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है)

अंधभक्त किसे कहते है

पाकिस्तान रोज गोलीबारी कर रहा है जवान शहीद हो रहे हैं लेकिन देश सुरक्षित हाथों में है चीन घुसपैठ कर रहा है लेकिन देश सुरक्षित हाथो में है एक छोटा सा देश नेपाल आंखें दिखा रहा है लेकिन देश सुरक्षित हाथों में है देश के मजदूर भूखे पेट सड़क पर चलने को मजबूर हैं लेकिन देश सुरक्षित हाथों में है 1 महिने में देश को भिखारी बना दिया अपना खाता खोलकर भिख मांग रहे हैं लेकिन देश सुरक्षित हाथों में अमेरिका से कर्जा ले लिया लेकिन देश सुरक्षित हाथों में है वर्ल्ड बैंक से कर्जा ले लिया लेकिन देश सुरक्षित हाथों में है इसी को अंध भक्ति कहते हैं अंध भक्त लोग सिर्फ एक पार्टी के बारे सोचते हों देश के बारे में नहींयह भी देखें

मंगलवार, 26 मई 2020

मुज्जफरनगर दंगा muzaffarpur

2013 में मुज्जफरनगर_दंगों के बाद एक अंग्रेजी अख़बार में संघ के व्यक्ति का बयान था कि अब तक हम जाटलैंड में एंट्री नहीं कर पा रहे थे पर अब मुजफ्फरनगर के बाद हमें जाटलैंड में एंट्री मिल गई | और संघ के इन महाशय का बयान बिलकुल सही भी है | आज जाटलैंड में जाट ही चौधरी छोटूराम , चौधरी चरण सिंह , चौधरी देवी लाल जैसे महान नेताओं के खिलाफ बोलने लगे हैं | दरअसल मुंह तो जाटों के हैं पर इनके मुंह में जो ये बोल हैं ये इन संघियों के हैं | सभी धर्मों के जिन जाटों ने कभी चौधरी छोटूराम , चौधरी चरण सिंह , चौधरी देवी लाल का साथ दिया समय समय पर उन्हीं जाटों के अन्दर इन लोगों ने जहर भरा | जिस किसानों के मसीहा चौधरी छोटूराम ने सिर्फ जाट ही नहीं हर किसान मजलूम को उसका हक़ दिलवाया उस महान आत्मा को आज ये लोग खुद आगे न आकर हमारे ही लोगों से अंग्रेजों का पिट्ठू कहलवा रहें हैं |
अब बात जाट आरक्षण की | 2014 से पहले सिर्फ राजस्थान के जाटों को ही केंद्र मे आरक्षण था उसमे भी भरतपुर धोलपुर जिलो को छोड़ कर | दिल्ली , यू.पी. , मध्यप्रदेश , हिमाचल प्रदेश के जाटों को राज्यों मे आरक्षण पहले ही मिला हुआ था परंतु इनका केंद्र मे आरक्षण नहीं था | राजस्थान के जाटों ने जब शुरू में आरक्षण की मांग उठाई उस वक़्त राज्य मे भाजपा सरकार थी | भाजपा की शेखावत राज्य सरकार जाटों के आरक्षण के विरुद्ध थी | इसके लिए राज्य सरकार ने एनसीबीसी के सामने अपनी आपत्ति भी दर्ज कारवाई | एनसीबीसी ने 1997 में ही गुजराल सरकार को जाटों को केंद्र मे आरक्षण देने की अपनी सिफ़ारिश भेज दी थी परंतु उस पर कोई फैसला नहीं हुआ और वह ऐसे ही लटकी रही | राजस्थान में जाटों का आंदोलन पूरे जोरों पर था | इस मांग के लिए राजस्थान में लाखों की संख्या मे जाट एक रैली में इकट्ठा हुए और फैसला लिया गया कि जो आरक्षण देगा उसे वोट देंगे | वाजपाई ने आरक्षण देने का वादा किया और सरकार में आते ही 1999 मे एनसीबीसी की सिफ़ारिश को मानते हुए जाटों को आरक्षण दे दिया , जिसमे दो जिले छोड़ दिये भरतपुर और धोलपुर , एनसीबीसी ने कारण बताया कि यह जाट रियासते थी | हरियाणा यू.पी. , पंजाब के जाटों को आरक्षण न देने का कारण आर्य समाज बताया | जब 1999 में राजस्थान के जाटों को आरक्षण दिया तो आरबीसीसी के सदस्य-सचिव सत्यनारायन सिंह ने इस का विरोध किया और अपने पद से त्याग पत्र दे दिया और उसके बाद सत्यनारायन सिंह ने जाटों के इस आरक्षण को राजस्थान हाई कोर्ट मे चुनौती दी |
अब इसमें देखने वाली बता यह हैं कि भाजपा का यह कैसा जाट प्रेम था कि एक तरफ तो केंद्र सरकार जाटों को आरक्षण दे रही हैं तो दूसरी तरफ भाजपा की राज्य सरकार खुद ही इसका विरोध कर रही थी ? इसके अपने आदमी ही कोर्ट मे याचिका दायर कर रहे थे ? यू.पी. व दिल्ली के जाटों को आरक्षण वहां कि भाजपा राज्य सरकारों ने दिया , मध्य प्रदेश के जाटों को आरक्षण कांग्रेस की दिग्विजय सिंह सरकार ने दिया | राज्य सरकार जाटों को राज्य मे पिछड़ा मान रही हैं जबकि केंद्र सरकार उन्हे केंद्र मे अगड़ा मान रही थी , यह कैसा न्याय ?
अब जब 2013 में हरियाणा के जाटों की आरक्षण की मांग को मानते हुए हरियाणा राज्य की हुड्डा सरकार ने जाटों को आरक्षण की घोषणा की तो मीडिया में सबसे पहले इसका विरोध भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रामबिलास शर्मा व अंबाला से भाजपा के विधायक अनिल वीज ने किया | 2014 में कांग्रेस ने 9 राज्यों के जाटों को केंद्र में आरक्षण की घोषणा की तब भी भाजपा के कई नेताओ ने इसका विरोध किया | सोचने वाली बात यह हैं कि राजस्थान में आरक्षण के लिए 4-5 लाख इकट्ठा हुए तब भाजपा ने मौके की नजाकत को देखते हुए घोषणा की जबकि कांग्रेस द्वारा दिये गए इन 9 राज्यों से तो कभी 1 लाख जाट भी इकट्ठा नहीं हुए और फिर भी कांग्रेस ने 9 राज्यो के जाटों को आरक्षण दे दिया ! खूब हैं जाट भी जिन्होंने इनका विरोध किया उन्हे वोट और जिहोने इनको आरक्षण दिलाने मे मदद की उनकी गोभी खोद दी ?
9 राज्यों को दिए आरक्षण पर जिस कांग्रेस ने स्टे भी नहीं लगने दिया उसको भाजपा ने सत्ता में आते ही निरस्त करवा दिया ? और हरियाणा में भी जो आरक्षण ढाई साल के करीब रहा उसको भी भाजपा ने निरस्त करवा दिया | दोनों ही जगह दलील थी कि कांग्रेस ने अध अधुरा दिया , हम इसे ढंग से पक्का करके देंगे | और उसके बाद जिस केसी गुप्ता आयोग को सुप्रीम कोर्ट ने मना किया उसी को फिर से आधार बना कर बीजेपी ने हरियाणा में फिर से आरक्षण दे दिया , फर्क इतना कि इन्होने उसे विधानसभा में पास करके दिया | पर इस पर भी कोर्ट कि पहली तारीख पर स्टे लग गया | केंद्र में तो आजतक जाट आरक्षण पर कोई कार्यवाही नहीं जबकि भाजपा सरकार ने स्वर्णों को आरक्षण देने में चंद लम्हे लिए ! इस बीच हरियाणा में बीजेपी के दो सांसदों राजकुमार सैनी व अश्विनी चोपड़ा ने जाटों के खिलाफ बोलना शुरू किया | राजकुमार सैनी ने तो जाटों , चौधरी छोटूराम व चौधरी भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के पिता तक के बारे में बहुत गलत बयानबाजी की | हालाँकि , बाद में हुड्डा परिवार पर जो बयान दिया था उसके लिए माफ़ी मांग ली | पर राजकुमार सैनी के बयानबाजी से हरियाणा के हालात बिगड़ते ही गए | जब मीडिया भाजपा नेताओं से राजकुमार सैनी के बयानों की पूछता तो सबका एक ही जवाब कि यह राजकुमार सैनी की निजी अभिव्यक्ति है | फरवरी 2016 में शांतिपूर्वक आरक्षण आन्दोलन को भड़का कर हिंसक करवा दिया गया और नतीजा ये हुआ कि भारी जानमाल का नुकसान हुआ | जाटों को बदनाम करने के लिए मुरथल रेप जैसी झूठी कहानियां गढ़ी गई |
जब चुनाव से पहले कांग्रेस ने सेना के अगले जरनल के लिए जरनल दलबीर सुहाग के नाम की सिफ़ारिश भेजी तब भी भाजपा ने इसका विरोध किया आचार संहिता का बहाना किया | भाजपा सरकार बनने के बाद भाजपा के एक मंत्री ने फिर सुहाग साहब का विरोध किया और आपत्तीजनक टिप्पणी भी की | सुहाग साहब पहले जाट हैं जो सेना के जरनल बनेंगे | और अभी हाल ही में भी भाजपा के इन्हीं मंत्री जी ने एक पोस्ट में जाट , गुर्जर , मराठा को भारत को इजराइल बनने की रह में रोड़ा बताया है | पर बाद में दबाव में इस पोस्ट को हटा लिया गया |
ये तो कुछ मुख्य बातें हैं , अगर हर छोटी छोटी बात और इतिहास से लिखने बैठा तो इस पर पूरी एक किताब लिखी जा सकती है | जाटों एक सीधी से बात समझ लो तुम्हारा जो भी नेता मुकाम तक गया वह तुम्हारी एकता के कारण गया | और जब भी तुमने धर्मों में बंट कर एकता तोड़ी तो दुसरे ही नेता बने | और भाजपा तो राजनीती ही धर्म की करती है तो अब खुद हिसाब लगा लो कि यह तुम्हरी एकता में बाधा है या फायदा ? एक बात ध्यान रखना जब भी धर्म की बात चलेगी तो उसमें राज तुम्हारा नहीं होगा | उस राज में तुम सिर्फ प्यादों की भूमिका में रहोगे | ये लोग तुम्हें राष्ट्रवाद के नाम पर बहकाएंगे | खुद ही सोचों कि क्या तुम या तुम्हारे बाप-दादा देशद्रोही गद्दार थे ? जब नहीं तो फिर क्यों ?

जय योद्धेय

सोमवार, 25 मई 2020

जाट

जाट एक कबीलाई जाती रही है और दुनिया भर के इतिहासकारों को पढ़ते है तो यह साबित होता है कि शिकार युग से खेती युग की तरफ बढ़ते तथ्यों में हर कालखंड में जाट की मौजूदगी रही है।उत्तर भारत का इतिहास पढ़ते है तो लगता है कि जाटों के इतिहास के साथ बहुत नाइंसाफी की गई है।कहा जाता है कि जो कौम अपना इतिहास भूल जाती है उसका वर्तमान इधर-उधर व भविष्य अंधेरे में नज़र आने लगता है।

भारत की किसान जातियों में जाट सबसे बड़ी आबादी में है और आज के हालात देखकर लगता है कि जाट अपना इतिहास भूल चुके है।वर्तमान की जमीं व भविष्य की बुनियाद इतिहास के सबक पर बनती है।

जाटों में मुख्यतया तीन प्रकार के जाट हो गए है।पहला हिंदुत्व वाला जाट,जिसको न वर्तमान का ज्ञान है और न भविष्य की आहट सुनाई देती है बस जाट होने का गौरव करने का झंडा थमा दिया गया है।दूसरा धर्मों में बंटा जाट है किसी को तिलक लगाकर,कलेवा बांधने पर गर्व है तो किसी को जालीदार टोपी पहनने पर गर्व है।किसी को पगड़ी पहनने पर गर्व है तो किसी को बाइबिल में दैवीय चमत्कार नज़र आता है।तीसरा जाट जो हर कदम पर जाट ही बने रहना चाहता है मगर ऊपर के दोनों तरह के जाट इनके जाट होने पर ही सवाल खड़े कर रहा है।

जाट ही नहीं हर किसान जाति यथा यादव,पटेल,गुर्जर, मराठा,कापू,मीणा, मेघवाल आदि की यही हालत है।सबसे बड़ी मजेदार बात यह है कि ये तीनो तरह के लोग अपनी-अपनी जाति के सामाजिक संगठनों के नेता है और किसी न किसी मोड़ पर जातिय स्वाभिमान की जंग में फंसे नज़र आ रहे है।इनके बीच लड़ाई धर्म को लेकर है।धर्म के नाम पर ये लोग आपस मे उलझे हुए है और धर्म की लड़ाई-द्वेष की बुनियाद पर सियासत की दिशा तय करने में लगे हुए है।

चौधरी छोटूराम सिकंदर हयात खान के साथ मिलकर संयुक्त पंजाब में सरकार चला लेते थे,चौधरी चरणसिंह की सभाओं में दाढ़ी वाले व पगड़ी वाले एकसाथ जुटकर उनको प्रधानमंत्री बना देते थे।चौधरी कुम्भाराम आर्य द्वारा किये संघर्ष में जाट-दलित बराबर के लाभार्थी बन जाते थे,बलदेवराम जी मिर्धा,रामदान जी डऊकिया के बनाये किसान बोर्डिंग में सभी जातियों के छात्र रहकर पढ़ते थे।कहने का तात्पर्य यह है कि जाटों की तरक्की के हर कार्य मे,जाट राजनेताओं के हर संघर्ष-लाभ में कभी जाति तक नहीं देखी गई तो फिर यह धर्म की चादर क्यों मजबूत दीवार बनकर खड़ी हो गई कि आपस मे ही जूतमपैजार किये जा रहे है?

अगर जाटों को इतिहास से सबक लेना व वर्तमान में संघर्ष करना है,उसकी बुनियाद पर भविष्य में अपना वजूद बनाये रखना है तो सबसे पहला काम यह करना है कि सब धर्मों की चमत्कारिक कहानियों से खुद को मुक्त करके जाट बनना होगा।जाटों का उज्ज्वल भविष्य सिर्फ और सिर्फ जाट बने रहने में है।जाट सदा से किसान कौम रही है और संघर्ष जाट के जीवन की बुनियाद है।कायर लोग धर्मों में सुरक्षित महसूस करते है।यह जाटों का गुण नहीं है।जाट जिस धर्म मे गया वो धर्म ही खतरे में गया है,जाटों को किसी धर्म से कोई खतरा नहीं है।

जाटों के खून में धर्म नहीं है,जाटों के गुणों में कायरता नहीं है।जाट जितने भी धर्मों में गए,जितने भी नए सम्प्रदाय बनाये मगर अपना जाटपना नहीं छोड़ पाएं है।जब भी जाट संघर्ष के मैदान में खड़ा होता है धर्मों की दीवारे ढहाकर सबसे पहले जाट ही उसके साथ खड़ा होता है और उसके समर्थन में जाटों के स्वाभाविक साथी जो सदियों से उनके साथ भाईचारा बनाकर साथ रहते आयें है।

भगतसिंह को लेकर भी बड़ा अजीब सा संघर्ष छिड़ा हुआ है।इस संघर्ष में कोई और नहीं बल्कि जाट ही आपस मे जूतमपैजार हुए जा रहे है।23 साल के एक युवा ने जो समाज को दिया है उसका अहसान मानकर उनके विचारों पर चलने के बजाय यह तय किया जा रहा है कि भगतसिंह सिक्ख थे,हिन्दू थे,आर्यसमाजी थे या कुछ और?"मैं नास्तिक क्यों हूँ"नामक भगतसिंह का लिखा लेख ये सब लोग पढ़ चुके है मगर अपनी लालसा में उसको धार्मिक बताने की जाहिलयत के खेल को खेल रहे है।

क्या नास्तिक होना,कहना मात्र ही पर्याप्त नहीं है कि उनका किसी भी धर्म से कोई लेना देना नहीं?क्या किसी धर्म के अनुयायी परिवार में पैदा होना उनका गुनाह था?क्या किसी पंथ-सम्प्रदाय से प्रभावित परिवार में पलना-बढ़ना कोई अपराध हो गया था?जब इंसान परिपक्व हो जाता है,अपनी सुध-बुद्ध हासिल कर लेता है और खुद ही मात्र कहता नहीं है कि मैं नास्तिक हूँ बल्कि उससे भी दो कदम आगे जाकर लोगों को समझाने के लिए लिखता है "मैं नास्तिक क्यों हूँ?"क्या यह पर्याप्त नहीं है?

जाट की प्रकृति प्रेमी विरासत को छोड़कर जिन्होंने भी आसमानी किताबों मे अपना भविष्य खोजा, यीशु की आस्था में मुक्ति का मार्ग ढूंढा, पगड़ियों का स्वरूप बदला, लकड़ फूंकने में जीवन की शुद्धता को खोजा वो सब जाटों को बिखेरने के शगूफे थे और धार्मिक कट्टरता की पौथीयों का वाचन करके उनको कायर बनाया गया था बाकी जाट जहां खड़ा हो जाता था वो इतिहास बन गया और भारत का भविष्य भी वो जाट निर्धारित करेंगे जो सिर्फ और सिर्फ जाट बनकर लड़ेंगे

आर्य समाज और जाट

आर्यसमाज और जाट

  आर्यसमाज को लेकर वाद-विवाद चल रहा है तो हमे भी सच्चाई सामने लाने का प्रयास करना चाहिए।आर्यसमाज की स्थापना 1875 में मुम्बई में होती है और मुम्बई में इसका प्रचार-प्रसार करने के बजाय इसका कार्यालय तुरंत बाद लाहौर शिफ्ट हो जाता है!

आर्य समाज के बड़े प्रचारक-पदाधिकारी वर्ग विशेष के ही रहे है!संयुक्त पंजाब व बंटवारे के बाद भी वर्ग विशेष के अखबारों के मालिक ही इनके कर्ता-धर्ता रहे!

चौधरी छोटूराम के खिलाफ ये आर्य समाजी अखबारों के मालिक खूब जहर उगला करते थे!चौधरी छोटूराम ने आर्यसमाज द्वारा आहूत हैदराबाद आंदोलन से जाटों को दूर रहने को कहा!

चौधरी छोटूराम ने जो अखबार निकाला वो जाट गजट नाम से निकाला आर्य समाज गजट नाम से नहीं!जाट स्कूल,जाट कॉलेज,जाट धर्मशाला आदि बनवाये।कृषि उत्पाद मार्केटिंग बिल को लेकर असेंबली में चौधरी छोटूराम पर अभद्र टिप्पणी करने वाला आर्य समाजी था!

आर्य समाजियों का मोटा-मोटा योगदान देखा जाए तो सबसे पहला तो यही नज़र आता है कि ब्राह्मणवाद के खिलाफ जो समाज सुधार आंदोलन चला था उससे जाट सिक्खिज्म में न चला जाएं इसलिए थामना था!

पंडित मूलशंकर तिवारी उर्फ दयानंद सरस्वती ने कबीर को उटपटांग भाषा व तंबूरा लेकर घूमने वाला नीच जुलाहा कहा!संत दादू को तेली कहा!गुरु नानक को अज्ञानी कहा!संत रामदास के लिए तो जातुसूचक गाली तक का उपयोग किया था!जन्म के आधार पर वर्णव्यवस्था का विरोध करने वाला पंडित खुद इस तरह की भाषा क्यों लिख रहा था?

आर्य समाजी प्रचारकों,पदाधिकारियों व अखबारों के मालिकों के इस गठजोड़ बंटवारे के समय मारकाट में क्या भूमिका अदा की उस सच्चाई को भी सामने लाना चाहिए!पश्चिमी पंजाब में जाट-गुर्जर आदि तो मुसलमान ही बने हुए थे और इधर के जाटों को मुसलमानों से कोई खतरा था नहीं फिर इतनी हत्याएं किसने की व क्यों की?पाकिस्तान से भारत आने वाली आबादी किस वर्ग की थी?

भारत मे मुसलमानों की बस्तियां फूंकने के लिए माहौल बनाने वाले अखबारों के मालिक कौन थे,आर्य समाजियों के गुरुकुलों की कोई भूमिका थी या नहीं?हथियार सप्लायर कौन थे?असल मे आर्य समाजी जाटों की भूमिका उस समय क्या थी वो वर्तमान आर्यसमाजी जाटों को खोजनी चाहिए,पढ़नी चाहिए!चौधरी छोटूराम आर्यसमाजी होकर भी जाट ही थे और जब तक जिंदा थे तब तक कट्टरपंथी ताकतों को पंजाब में नहीं घुसने दिया था।

एक समय अखबार मालिक लाला जगत नारायण जिसकी आर्य समाज मे तूती बोलती थी उसने अखबारों के माध्यम से पंजाब में जो नफरत फैलाई थी और मुख्यमंत्री प्रतापसिंह कैरो चाचा छोटूराम की दुहाई देकर आर्य समाजी जाटों को समझा रहे थे तब आर्य समाजी जाट किस तरफ खड़े थे?जब पंजाब में जाट सिक्खों पर अत्याचार हो रहे थे तब आर्य समाजी जाट कहाँ थे?दिल्ली में सिक्खों का नसरसंहार हो रहा था तब आर्य समाजी जाट कहाँ थे?रोहतक-पानीपत से ट्रेनें-बसें भरकर दिल्ली में दंगा करने आने का जो आरोप लगा था उसकी वास्तविकता क्या थी?

मेरे एक मित्र है उन्होंने लिखा कि मेरे भतीजे ने सवाल किया कि आर्य समाजी कह रहे है कि दादा खेड़ा तो इस्लाम की कांसेप्ट है क्योंकि मूर्ति-तस्वीर नहीं होती!क्या आर्य समाज मूर्ति पूजा का विरोध करते-करते वापिस अपनी जड़ों पर लौट चुका है?

आज आर्य समाजी जाट ज्यादातर आरएसएस के सिपाही बने नजर आते है अर्थात आर्य समाजी जाट आरएसएस के लठैत बन चुके है तो इतिहास व वर्तमान पर सवाल तो खड़े होंगे ही!आर्य समाज का भी झंडा उठाये रखना है और आरएसएस की शाखा से भी कोर्स करना है!यह कौनसा ब्राह्मणवाद का विरोध हुआ भाई?

मोटा-मोटी इशारों में सवाल किए है।सभ्य संवाद का स्वागत है।कुतर्क व व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप की कोशिशें हुई तो सत्यार्थ प्रकाश से लेकर तिवारी जी के जीवन की व वर्तमान में फुदक रहे है  सबका आईना सामने आ जायेगा।
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Arya Samaj and Jat

  If there is a debate about Arya Samaj, we should also try to bring out the truth. Arya Samaj is established in 1875 in Mumbai and instead of promoting it in Mumbai, its office is shifted immediately to Lahore!

The big campaigners and officials of the Arya Samaj have belonged to a special class! Even after the joint Punjab and Partition, the owners of newspapers of a particular class remained their doers!

The owners of these Arya Samaji newspapers used to spew a lot of venom against Chaudhary Chhoturam! Chaudhary Chhoturam asked the Jats to stay away from the Hyderabad movement called by Aryasamaj!

The newspaper that Chaudhary Chhoturam took out was not named as Arya Samaj Gajat by Jat Gazat! Get Jat School, Jat College, Jat Dharamshala etc. built. Arya Samaj was the vulgar commentator on Chaudhary Chhoturam in the assembly regarding the Agricultural Product Marketing Bill!

If you see the thick contribution of Arya Samajis, then the first thing is that the Jats should not go to Sikhism because of the social reform movement against Brahmanism.

Pandit Moolshankar Tiwari alias Dayanand Saraswati called Kabir a vile weaver carrying uttapatang language and tambura! Calling Saint Dadu a Teli! Calling Guru Nanak ignorant! For saint Ramdas, he even used a sarcastic abuse! Why was the Pandit himself writing such a language opposing?

The role of Arya Samaj campaigners, office bearers and newspapers owners should also bring out the truth of what role they played in the market during the sharing of the alliance! In West Punjab, the Jats and Gujjars were still Muslims, and the Jats here were no more than Muslims. There was no danger, then who did such murders and why? Which class of the population coming from Pakistan to India?

Who was the owner of the newspapers that created the atmosphere for the Muslim settlements in India, whether the gurukuls of Arya Samajis had any role or who were the arms suppliers? Actually what was the role of Arya Samaj Jats at that time to find the present Aryasamaji Jats? Should, should read! Chaudhary Chhoturam was a Jat even after Aryasamaji and did not allow radical forces to enter Punjab till he was alive.

At one time, the newspaper owner Lala Jagat Narayan, who used to speak in Arya Samaj, spread the hatred in Punjab through newspapers and the Chief Minister Pratapsingh Kai was explaining the Arya Samaj Jats by chanting uncle Chhoturam, on which side did Arya Samaji Jat stand? Where were the Arya Samaji Jats when the Jat Sikhs were being tortured in Punjab? Where was the Sikh genocide happening in Delhi, where were the Arya Samaj Jats? The charges of coming to riot Delhi by filling trains and buses from Rohtak-Panipat What was his reality?

I have a friend. He wrote that my nephew questioned that Arya Samaji is saying that Dada Kheda is a concept of Islam because there is no idol. Is the Arya Samaj opposing idol worship and has returned to its roots? The

Today, Arya Samaji Jats are mostly seen as soldiers of the RSS, that is, Arya Samaji Jats have become the leaders of the RSS, so questions will be raised on the history and the present! Arya Samaj also has to keep the flag and course from the RSS branch too. Which Brahminism was opposed to this brother?

Questions have been asked in bold gestures. Good communication is welcome. Attempts are made for personal and accusatory counter-arguments, from the Satyarth Prakash to the life of Tiwari and presently, the mirror will be expose.

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